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भारत की दशा
पड़े। चांडाल के दर्शन को उन्होंने बड़ा अशकुन समझा और वे घर लौट गई। घर जाकर उन्होंने उस दर्शन के पाप को मिटाने के लिये अपनी आँखें धो डाली। इसके बाद लोगों ने उन दोनों चांडालों को खूब पीटा और उनकी खूब दुर्गति की। "मातंग जातक" तथा "सतधम्म जातक" से भी पता लगता है कि अछूत जातियों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया जाता था। बुद्ध के दयापूर्ण हृदय में इस सामाजिक अन्याय के प्रति अवश्य घृणा का भाव उत्पन्न हुआ होगा । इसी अन्याय को दूर करने के लिये उन्होंने ऊँच नीच के भेद को बिलकुल त्याग दिया; और अपने धर्म तथा संघ का द्वार सब वर्णो तथा सब जातियों के लिये समान रूप से खोल दिया। . जातकों से यह भी पता लगता है कि बौद्ध काल के पूर्व एक वर्ण दूसरे वर्ण के साथ विवाह और भोजन कर सकता था। इस तरह के विवाह से जो संतान उत्पन्न होती थी, वह अपने पिता के वर्ण की समझी जाती थी। जातकों से ही यह भी पता लगता है कि दूसरे वर्ण में विवाह करने की अपेक्षा अपने वर्ण में विवाह करना अच्छा समझा जाता था। पर एक ही गोत्र में विवाह करना निषिद्ध माना जाता था ।
जातकों से यह भी प्रकट होता है कि बौद्ध काल के पहले सब वर्गों और जातियों के मनुष्य अपने से इतर वर्ण और इतर जाति का भी काम करने लगे थे। ब्राह्मण लोग व्यापार भी करते थे। वे कपड़ा बुनते हुए, पहिये आदि बनाते हुए और
.* देखो-"भइसाल जातक," "कुम्मासपिण्ड जातक" और "उद्दालक जातक"। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com