________________
१९४
गैर-कालीन भारत या शर्त मान ली और पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाकर दुष्टों को दण्ड दिया और सब को अपने अपने धर्म में लगाया ।"
बौद्ध साहित्य में भी राजा की उत्पत्ति के बारे में इसी तरह का विचार पाया जाता है। "दीघ-निकाय" के "अग्गज-सुत्तन्त" में मनुष्य और समाज की उत्पत्ति और विकास के बारे में विस्तार के साथ लिखा है। उसमें कहा गया है कि प्रारंभ में मनुष्य-समाज पवित्र और धार्मिक था; पर धीरे धीरे उसमें पाप प्रवेश करने लगा और लोग चोर, डाकू, झूठे, व्यभिचारी आदि होने लगे। इस पर सब लोगों ने इकट्ठ होकर आपस में सलाह की
और अपने में से एक सब से सुन्दर, सब से दयावान और सब से शक्तिमान मनुष्य चुनकर उससे कहा-“हे महाभाग, जो लोग अपराधी और दण्ड के योग्य हों, उन्हें दण्ड दो। हम तुम्हें अपने भक्त (चावल) में से एक भाग देंगे।" उसने यह बात मान ली। इस पर उसके तीन भिन्न भिन्न नाम रखे गये । सब लोगों ने उसे चुना था, इसलिये वह “महाजन-संमत" या "महा संमत" कहलाया। वह सब खेतों का पति या रक्षक था, इसलिये वह "क्षेत्राणां पति" या "क्षत्रिय" कहलाया। वह दूसरों को अपने धर्म से प्रसन्न करता था, इससे वह "राजा" कहलाया । ऐसी ही एक कथा महायान संप्रदाय के "महावस्तु" ग्रन्थ में भी है।
ऊपर जो कुछ लिखा गया है, उससे प्रकट है कि राजा या एकतन्त्र राज्य का प्रारंभ राजा-प्रजा के बीच समझौते के रूप में हुआ। इस समझौते के पहले मनुष्यों में अराजकता फैली हुई थी। जिसे जो चीज मिलती थी, वह उसी पर कब्जा कर लेता था; और जो जिस प्रकार चाहता था, वह उसी प्रकार आचरण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com