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प्राचीन शिप-सा प्राचीन बौद्ध काल की मूर्तिकारी में एक विशेष बात ध्यान देने योग्य है । उस काल की बनी हुई बुद्ध भगवान की मूर्ति कहीं नहीं मिलती। इसका एक मात्र कारण यही है कि पूर्वकालीन बौद्धों ने बुद्ध के “निर्वाण" को यथार्थ रूप में माना था । जिसका निर्वाण हो चुका था, उसकी प्रतिमा भला वे क्यों बनाते ? शनैः शनैः जब महायान संप्रदाय का प्रादुर्भाव हुआ, तब गौतम बुद्ध देवता रूप में पूजे जाने लगे और उनकी मूर्तियाँ बनने लगी। प्राचीन बौद्ध काल में बुद्ध भगवान् का अस्तित्व कुछ चिह्नों से सूचित किया जाता था; जैसे "बोधि वृक्ष"(पीपल का पेड़), "धर्मचक्र" अथवा "स्तूप" आदि । इनमें से प्रत्येक चिह्न बुद्ध के जीवन की किसी न किसी प्रधान घटना का सूचक है। पीपल का वृक्ष यह सूचित करता है कि बुद्ध ने इसी पेड़ के नीचे बैठकर बुद्ध पद प्राप्त किया था। इसी तरह चक्र या पहिया बुद्ध के धर्मप्रचार के प्रारम्भ का सूचक है और स्तूप उनके निर्वाण (मृत्यु) का चिह्न है। इन चिह्नों से वे स्थान सूचित किये जाते हैं, जहाँ ये प्रधान घटनाएँ हुई थीं। __मौर्य काल की मूर्तियों में पुरुषों की वस्त्र-सामग्री एक धोती मात्र थी । शरीर का ऊपरी भाग बिलकुल नग्न रहता था । इस काल की मूर्तियों में अँगरखा या कुरता कहीं नहीं मिलता । सिर पर एक मुँडासा या पगड़ी रहती थी। पुरुषों और विशेष करके त्रियों की मूर्तियाँ गहनों से लदी हुई मिलती हैं। इस काल की मूर्तियों के सिर लम्बे, चेहरे गोल और भरे हुए, आँखें बड़ा बड़ी, ओंठ मोटे और कान प्रायः लम्बे हैं। पुरुषों की पगड़ी या मुँडासा इतना अधिक उभड़ा हुआ है कि उसके कारण शरीर के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com