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साहित्यिक पशा हैं। उनका सब से प्रसिद्ध ग्रन्थ “बुद्ध-चरित" नामक महाकाव्य है । इस की कविता कालिदास की कविता के जोड़ की है। यदि अश्वघोष का काल ईसवी प्रथम शताब्दी और कालिदास का पंचम शताब्दी माना जाय, तो यही सिद्ध होता है कि कालिदास ने अश्वघोष का अनुकरण किया होगा। अश्वघोष का एक और महाकाव्य "सौन्दरनन्द" है । यद्यपि यह कालिदास के काव्यों की टक्कर का नहीं है, तथापि इसमें मनोरंजन की बहुत कुछ सामग्री है। इसके अनेक अंश भाव-वैचित्र्य और चमत्कार से पूर्ण हैं । इस में कवि ने सुन्दरी और नन्द नामक दो व्यक्तियों के चरित वर्णन करके उसी के बहाने मोक्ष की शिक्षा दी है। अतः इस काव्य में शान्त रस का ही आधिक्य है। इस काव्य का नायक नन्द ऐतिहासिक व्यक्ति है। वह बुद्धदेव की मौसी का लड़का था। कहा जाता है कि अश्वघोष ने अलंकार शास्त्र पर भी एक ग्रन्थ लिखा था। उनके लिखे हुए "महायान-श्रद्धोत्पद-शास्त्र," "सूत्रालंकार" "उपाध्याय-सेवाविधि" आदि और भी सात आठ ग्रन्थों का पता लगा है। उनमें से कुछ ग्रंथों के अनुवाद भी चीनी तथा जापानी भाषाओं में मिलते हैं। नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि वे अश्वघोष के बाद हुए । अश्वघोष की तरह वे भी ब्राह्मण वंश के ही थे । शायद वे महायान पन्थ के जन्मदाता या प्रवर्तक थे; और नहीं तो, कम से कम उसकी शाखा "माध्यमिक सम्प्रदाय" के, जन्मदाता तो अवश्य थे। इस सम्प्रदाय का मुख्य ग्रन्थ "माध्यमिक सूत्र" उन्हीं का रचा हुआ है। वसुमित्र उस बौद्ध महासभा के सभापति चुने गये थे, जो कनिष्क के समय में हुई थी। इससे पता लगता है कि वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ विद्वान् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com