Book Title: Bauddhkalin Bharat
Author(s): Janardan Bhatt
Publisher: Sahitya Ratnamala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ ३६९ परिशिष्ट (क) हुए थे । अनुमान है कि सारनाथ का स्तंभ-लेख, जिसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा है-"जो भिक्षुकी या भिक्षुक संघ में फूट डालेगा, वह सफेद कपड़ा पहनाकर उस स्थान में रख दिया जायगा, जो मिक्षुओं के लिये उचित नहीं है" इसी सभा के निश्चय के अनुसार बना था। चतुर्थ महासभा __ बौद्ध धर्म की चौथी महासभा कनिष्क के समय में हुई। अशोक के बाद फिर धीरे धीरे बौद्ध धर्म अनेक संप्रदायों में बँटने लगा । यहाँ तक 'कि कनिष्क के पहले बौद्ध धर्म में निश्चित रूप से १८ संप्रदाय हो गये थे । कदाचित् इन संप्रदायों को एक करने के लिये ही यह सभा हुई थी। इस सभा के सम्बन्ध में बौद्ध ग्रन्थों में परस्पर विरोधी बातें पाई जाती हैं। तारानाथ कृत बौद्ध धर्म के इतिहास से पता लगता है कि अठारह संप्रदायों में जो झगड़ा हो रहा था, वह इस महासभा में तै हुआ। एक दूसरे तिब्बती ग्रन्थ से पता लगता है कि कनिष्क ने भिन्न भिन्न संप्रदायों के पारस्परिक विरोध का अन्त करने के लिये अपने गुरु पार्श्व से एक बौद्ध महासभा करने का प्रस्ताव किया। पार्श्व ने यह प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया और इसके अनुसार बौद्ध धर्म के विद्वानों की एक बड़ी सभा करने का प्रबन्ध किया। कनिष्क ने इसके लिये कश्मीर की राजधानी में एक बड़ा विहार निर्माण कराया। इस महासभा में ५०० विद्वान् उपस्थित थे और इसके सभापति वसुमित्र चुने गये थे। इन विद्वानों ने समस्त बौद्ध ग्रन्थों को अच्छी तरह से देख भालकर सब संप्रदायों के मत के अनुसार बड़े परिश्रम के साथ संस्कृत भाषा के एक एक लाख श्लोकों में सूत्र-पिटक, विनय-पिटक और अभिधर्म-पिटक पर तीन महाभाष्य रचे । ये महाभाष्य क्रम से "उपदेश", "विनय-विभाषा-शास्त्र" और "अभिधर्म-विभाषा-शास्त्र" कहलाते हैं। जब महासभा का कार्य समाप्त हुआ, तब जो महाभाष्य उसमें रचे गये थे, वे ताम्रपत्र पर नकल करके एक ऐसे स्तूप में रक्खे गये, नो कनिष्क की आज्ञा से केवल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418