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बौछ-कालीन भारत
३७६. की नींव कब पड़ी, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । पर चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग ने अपने यात्रा-वर्णन में लिखा है कि बुद्ध के निर्वाण के कुछ समय बाद ही शक्रादित्य नाम के एक राजा ने इसे बनवाया था । कहा जाता है कि अशोक के समय में ही संसार से विरक्त कुछ भिक्षु और संन्यासी नालन्द में कुटी बनाकर रहने लगे थे। क्रमशः उनकी कीर्ति फैलने लगी और नालन्द विद्या-पीठ में परिणत हो गया। गुप्त लाल में नालन्द विद्या का सब से बड़ा केन्द्र था । इसी समय यह विद्यापीठ महा-विद्यालय में परिणत हुआ और भारतवर्ष के सभी प्रान्तों के विद्यार्थी यहाँ आकर विद्याध्यन करने लगे । सातवीं शताब्दी में हेनत्सांग ने नालन्द के ऐश्वर्य का बहुत मनोहर वृत्तान्त लिखा है। चीन ही में उसने नालन्द का हाल सुना था; तभी से उसे देखने के लिये वह बहुत लालायित हो रहा था । भारतवर्ष में आकर वह घूमता फिरता नालन्द भी गया । वहाँ पहुँचते ही उसके दिल पर ऐसा असर पड़ा कि वह तुरन्त विद्यर्थियों में शामिल हो गया। उस समय नालन्द विश्वविद्या. लय में १०,००० विद्यार्थी निवास करते थे। आठवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म का हास होने के साथ ही साथ नालन्द का भी हास हो गया । अन्त में मुसलमानों के आक्रमण से इस विश्वविद्यालय का सदा के लिये अन्त हो गया; और वहाँ के भिक्षु और संन्यासी आदि या तो मार डाले गये या अन्य देशों में भाग गये।
ह्वेनसांग * ने नालन्द के बारे में लिखा है कि वहाँ चारों ओर ऊँचे ऊँचे विहार और मठ खड़े थे। बीच बीच में सभागृह और विद्यालय बने हुए थे । वे सब समाधियों, स्तूपों और मन्दिरों से घिरे थे । उनके चारों ओर बौद्ध शिक्षकों और प्रचारकों के रहने के लिये चौमंज़िली इमारतें थीं। इनके सिवा ऊँची ऊँची मीनारों और विशाल भवनों की
___ * Walter's Ywan.chwang, Vol. II. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com