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परिशिष्ट (क) चार बौद महासभाएँ
प्रथम महासभा कहा जाता है कि बुद्ध के निर्वाण के कुछ ही दिन बाद सुभद्द (सुभद्र) नामक भिक्षुक ने अन्य भिक्षुओं से कहा-"मच्छा हुमा, बुद्ध मर गये। हम लोग उनके चंगुल से छूट गये । अब हम लोग स्वतंत्रता के साथ जो चाहेंगे, कर सकेंगे।" उसने बुद्ध भगवान् के विरुद्ध आन्दोलन करना प्रारंभ किया। मालूम होता है कि उस समय बौद्ध धर्म में प्रबल मतभेद हो गया था; और भिक्षु संप्रदाय कदाचित् दो पक्षों में बँट गया था, जिनमें से एक पक्ष का नेता सुभद्र था। सुभद्र के मत का खण्डन तथा बुद्ध भगवान् के उपदेशों और सिद्धान्तों का संग्रह करने के लिये महाकाश्यप, आनन्द और उपालि आदि पाँच सौ भिक्षुओं ने राजगृह में एक महासभा की। इस महासभा के सभापति वृद्ध विद्वान् महाकाश्यप थे। यह महासभा राजगृह के पास वेभार (वैहार) पहाड़ी की सप्तपर्णी गुफा में हुई। मगध के राजा अजातशत्रु ने यह गुफा इसी उद्देश्य से बनवाई थी। यह सभा लगातार सात महीनों तक होती रही। इसमें बुद्ध के विनय और धर्म सम्बन्धी सिद्धान्त संगृहीत किये गये।
द्वितीय महासभा बौद्ध ग्रन्थों से पता लगता है कि द्वितीय बौद्ध महासभा प्रथम महासभा के लगभग सौ वर्ष बाद वैशाली के समीप वेलुकाराम में की
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