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शिल्प-कला को शा सम्बन्ध रखती हैं। यहाँ जैन हिन्दू धर्म की एक भी मूर्ति अभी तक नहीं मिली। “गान्धार मूर्तिकारी" का नाम “ग्रीकोबुद्धिस्ट मूर्तिकारी" भी है; क्योंकि इसमें यूनानियों की मूर्तिनिर्माण कला का उपयोग बौद्ध धर्म सम्बन्धी विषयों में किया गया है। बुद्ध की मूर्तियाँ प्राचीन यूनान के सूर्य देवता "अपोलो" की शकल की हैं और उनका पहनावा भी प्राचीन यूनानियों का सा है। गान्धार मूर्तिकारी के सब से अच्छे नमूने कनिष्क और हुविष्क के समय के हैं। यह मूर्तिकारी ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्व की है। इससे उत्तरी भारत का ईसा के बाद की दो तीन शताब्दियों का इतिहास आँखों के सामने आ जाता है । गान्धार मूर्तियों में उत्तरी भारत के तत्कालीन समाज, सभ्यता, धर्म तथा कला कौशल का चित्र खिंचा हुआ मिलता है। इन मूर्तियों में राजा से रंक तक, समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों का चित्र है। गान्धार मूर्तियाँ अधिकतर लाहौर, कलकत्ते और पेशावर के अजायबघरों में हैं। ऐसी कुछ मूर्तियाँ युरोप के लन्दन, बर्लिन, विएना आदि बड़े बड़े शहरों के अजायबघरों में भी पहुँच गई हैं। ___बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियाँ-जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, प्राचीन बौद्ध काल अथवा मौर्य काल की स्वयं बुद्ध भगवान् की मूर्ति कहीं अंकित नहीं मिलती। इसका कारण यही है कि पूर्वकालीन बौद्धों ने बुद्ध का “निर्वाण" यथार्थ रूप में माना था। पर जब महायान संप्रदाय का प्रादुर्भाव हुआ, तब गौतम बुद्ध और अन्य बोधिसत्व देवता के रूप में पूजे जाने लगे और उनकी मूर्तियाँ बनने लगीं। अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य का अधःपतन होते ही भारतवर्ष पर यूनानियों का आक्रमण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com