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बौद्ध धर्म का हास कर सके। इसी उद्देश्य से महायान संप्रदाय की उत्पत्ति हुई, जो एक प्रकार का भक्ति मार्ग था। इस सम्प्रदाय के अनुसार बुद्ध भगवान् परमात्मा समझे जाने लगे। बुद्ध के साथ ही साथ बहुत से बोधिसत्वों की भी कल्पना की गई। महायान संप्रदाय में बुद्ध और बोधिसत्व की पूजा देवी-देवताओं की तरह होने लगी। इसके साथ ही साथ यह उपदेश किया जाने लगा कि देवादिदेव बुद्ध की भक्ति करने से, उनके स्तूप की पूजा करने से अथवा उनकी मूर्ति पर भक्तिपूर्वक दो चार पुष्प चढ़ा देने से ही मनुष्य को सद्गति प्राप्त हो सकती है । महायान के सिद्धान्तों के अनुसार गृहस्थाश्रम में रहते हुए भक्ति के द्वारा निर्वाण पद पाना असंभव नहीं । यह महायान संप्रदाय प्राचीन बौद्ध धर्म की अपेक्षा हिन्दू धर्म से अधिक मिलता है। ज्यों ज्यों महायान संप्रदाय का प्रचार बढ़ने लगा, त्यों त्यों उसके रूप में अधिक परिवर्तन होता गया और वह पौराणिक धर्म से अधिक मिलने लगा। साथ ही पौराणिक धर्म और ब्राह्मणों का प्रभाव भी बराबर बढ़ने लगा। यहाँ तक कि गुप्त राजाओं के काल में पौराणिक धर्म और ब्राह्मणों का प्रभाव पूर्ण रूप से जम गया । गुप्त राजा हिन्दू धर्म के अनुयायी थे और ब्राह्मणों की राय से काम करते थे। वे संस्कृत के भी पण्डित थे और संस्कृत विद्वानों तथा कवियों का आदर करते थे । गुप्त वंश के द्वितीय तथा चतुर्थ राजा समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ करके हिन्दू धर्म को फिर से जाग्रत कर दिया । इस राज-सम्मान से हिन्दू धर्म को बड़ा भारी बल प्राप्त हुआ और साथ ही इससे बौद्ध धर्म को बड़ा धक्का
भी पहुँचा । तो भी गुप्त काल में बौद्ध धर्म का अधिक हास नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com