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ख-कालीन भारत
३५८ हुआ था। फाहियान को सिन्धु नदी से मथुरा तक ५०० मील की यात्रा में सैकड़ों बौद्ध मन्दिर और संघाराम मिले, जिनमें सहस्रों भिक्षु निवास करते हुए दिखलाई पड़े। पर भारतवर्ष के अन्य स्थानों में बौद्ध धर्म बिलकुल हीन अवस्था में था । इसके बाद ईसवी सातवीं शताब्दी में हर्ष तथा ह्वेन्त्सांग के समय बौद्ध धर्म बहुत हीनता को प्राप्त हो गया था। जो गन्धार प्रदेश फाहियान के समय बौद्ध धर्म का प्रधान केन्द्र हो रहा था, उसी में ह्वेन्त्सांग ने बौद्ध धर्म को बड़ी गिरी हुई दशा में पाया । उसने अपने यात्रा-वृत्तान्त में बौद्ध धर्म की इस हीन अवस्था पर बड़ा दुःख प्रकट किया है । अन्त में सातवीं शताब्दी के बाद मुसलमानों के लगातार आक्रमण से बौद्ध धर्म का बचा खुचा प्रभाव भी सदा के लिये जाता रहा । मुसलमानों ने अनेक बौद्ध-विहार जला दिये और उनमें रहनेवाले भिक्षु तलवार के बल से उच्छिन्न कर दिये गये । इस प्रकार धीरे धीरे बौद्ध धर्म अपनी जन्ममूमि से सदा के लिये लुप्त हो गया।
बौद्ध धर्म किस तरह धीरे धीरे हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो रहा था, यह पाली और संस्कृत के इतिहास से मालूम होता है। बुद्ध भगवान ने अपने धर्म का प्रचार उस समय की बोलचाल की भाषा में किया था। अशोक ने अपने धर्मलेख उस समय की सर्वसाधारण की भाषा में लिखवाये थे। पर धीरे धीरे बौद्ध धर्म पर ब्राह्मणों का प्रभाव इतना बढ़ गया था कि कनिष्क के समय में महायान संप्रदाय के ग्रन्थ संस्कृत में ही लिखे जाने लगे। धीरे धीरे शिलालेखों में भी संस्कृत भाषा का प्रयोग होने लगा। वासिष्क के राज्य काल का शुद्ध संस्कृत का एक शिलालेख मथुरा
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