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उपसंहार
बुद्ध भगवान् केवल भारतवर्ष के ही नहीं वरन् समस्त संसार के महापुरुषों में गिने जाते हैं। उन्होंने भारतवर्ष के इतिहास में एक नवीन युग की स्थापना की। उनके आने के पहले वैदिक धर्म अपनी सरलता और स्वाभाविकता खो चुका था । लोग यज्ञ, होम, बलिदान, जप और मन्त्र को ही सब से बड़ा धर्म मानने लगे थे। यज्ञ-प्रथा का प्रभाव समाज पर बहुत ही बुरा पड़ता था। यज्ञों में जो पशु-वध होता था, उससे मनुष्यों के हृदय कठोर और निर्दय होते जा रहे थे और उनमें से जीवन के महत्व का भाव उठता जा रहा था। लोग आत्मिक जीवन का गौरव भूलने लगे थे। वे बाह्याडम्बर को ही अपने जीवन में सब से श्रेष्ठ स्थान देते थे। लोग ब्राह्मणों के हाथ में अपना धर्म, कर्म, जप, होम आदि छोड़ देते थे और स्वयं कुछ नहीं करते थे । लोग यह समझते थे कि ब्राह्मणों के द्वारा धर्म-कर्म कराने से हमारे लिये मुक्ति का द्वार खुल जायगा। वे आत्मा की वास्तविक उन्नति के प्रति उपेक्षा कर रहे थे। आत्मिक उन्नति प्राप्त करने अथवा प्रकृति पर विजय पाने के लिये अनेक प्रकार की तपस्याओं के द्वारा अपनी काया को कष्ट पहुँचा रहे थे । समाज के बहुत से लोग आत्मा, परमात्मा, माया, प्रकृति सम्बन्धी शुष्क वितण्डावाद में फंसे हुए थे। इन लोगों के द्वारा समाज में एक प्रकार की नीरसता और शुष्क ज्ञान-मार्ग का प्रचार हो रहा
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