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उपसंहार करना चाहिए । उनके सिद्धांतों के अनुसार गृहस्थों और भिक्षुओं के लिये आवश्यक होता था कि वे प्रत्येक प्राणी के वध का विरोध करें, चाहे वह प्राणी छोटा हो या बड़ा।
तीसरी बात बुद्ध भगवान ने यह की कि अपने शिष्यों को सहयोग की शिक्षा दी और अपने देशवासियों के सामने संघटन शक्ति का श्रादर्श रक्खा । उनका स्थापित किया हुआ भिक्षु संघ सहयोग और संघटन शक्ति का बड़ा उज्ज्वल उदाहरण है । इसी सहयोग शक्ति की बदौलत बौद्ध धर्म का प्रचार केवल भारत के कोने कोने में ही नहीं, बल्कि बाहर भी दूर दूर तक हो गया।
चौथी बात बुद्ध भगवान् ने यह की कि अच्छा कर्म करने की महिमा लोगों को बतलाई। बुद्ध के सिद्धांतों के अनुसार जन्म एक दुःख की बात है । इस जन्म के दुःख से छुटकारा पाना ही सब से बड़ा उद्देश्य माना गया है; और अच्छा कम करने से ही मनुष्य जन्म के दुःख से छूट सकता है । बुद्ध भगवान् ने मनुष्यों को यह उपदेश दिया कि जो लोग धर्म-मार्ग पर चलना चाहते हों, उन्हें चाहिए कि वे दयालु, सदाचारी और पवित्र-हृदय बनें। बुद्ध के पहले लोगों का विश्वास था यज्ञों में, मन्त्रों में, तपस्याओं में और शुष्क ज्ञान मार्ग में । पर बुद्ध ने लोगों को यज्ञ, मन्त्र, कर्म-काण्ड और धर्माभास की जगह अन्तःकरण शुद्ध करने की शिक्षा दी । उन्होंने दीनों और दरिद्रों की भलाई करने, बुराई दूर करने, सब से भाई की तरह स्नेह करने और सदाचार तथा सच्चे ज्ञान के द्वारा दुःखों से छुटकारा पाने का उपदेश दिया । बुद्ध की पाँच प्रधान शिक्षाएँ, जो "पंचशील" कहलाती हैं, यही सूचित करती हैं कि बुद्ध भगवान् सदाचार और सत्कर्म पर बहुत जोर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com