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बौर धर्म का हास
में और दूसरा शिलालेख रुद्रदामन् का गिरनार में है। इसके बाद गुप्त काल के प्रायः समस्त शिला लेख संस्कृत में ही मिलते हैं। गुप्त राजाओं के सिक्कों पर भी संस्कृत भाषा के लेख अंकित हैं। इन सब बातों से सूचित होता है कि बौद्ध धर्म धीरे धीरे हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो रहा था।
बौद्ध धर्म किस तरह धीरे धीरे हिन्दू धर्म में रूपांतरित हो रहा था, यह शिलालेखों से भी जाना जाता है। अशोक के समय से कनिष्क के समय तक के शिलालेखों में जितने व्यक्तियों के नाम आये हैं या जितने दानों के उल्लेख हुए हैं, उनमें से तीनचौथाई बौद्ध धर्म सम्बन्धी हैं । बाकी एक-चौथाई में से अधिकतर जैन धर्म सम्बन्धी हैं। कनिष्क के समय से शिलालेखों में ब्राह्मणों, हिन्दू देवी-देवताओं, हिन्दू मन्दिरों और यज्ञों का अधिकतर उल्लेख आता है। यहाँ तक कि पाँचवीं शताब्दी में गुप्त राजाओं के काल के तीन-चौथाई शिलालेख हिन्दू धर्म संबंधी हैं; और बाकी एक-चौथाई में से अधिकतर जैन धर्म सम्बन्धी । इससे साफ जाहिर है कि बौद्ध धर्म धीरे धीरे हिन्दू धर्म को अपना स्थान दे रहा था। जो बौद्ध धर्म कनिष्क के समय तक भारतवर्ष का एक प्रधान धर्म था, वही गुप्त काल में या उसके बाद केवल थोड़े से लोगों का धर्म रह गया था । इस कारण जिस भारत को हम कनिष्क के समय तक “बौद्ध-कालीन भारत" कह सकते हैं, वही कनिष्क के बाद “पौराणिक या हिन्दू-कालीन भारत" में बदल जाता है। परिवर्तन का यह क्रम धीरे धीरे लगातार शताब्दियों तक जारी रहा; यहाँ तक कि बौद्ध धर्म की जन्मभूमि भारतवर्ष में अब नाम के लिये भी बौद्ध न रह गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com