________________
भाठवाँ अध्याय बौद्ध धर्म का हास और पौराणिक धर्म का विकास
बुद्ध के समय में बौद्ध धर्म केवल एक छोटे से प्रान्त में सीमाबद्ध था। जब ई० पू० ४८७ के लगभग बुद्ध भगवान् का निर्वाण हुआ, तब बौद्ध धर्म केवल एक छोटा सा संप्रदाय था। उस समय उसका प्रचार केवल गया, प्रयाग और हिमालय के बीचवाले प्रान्त में था। पर अशोक के धार्मिक उत्साह की बदौलत वह धर्म केवल कुल भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि उसके बाहर भी दूसरे देशों में फैल गया। अशोक के समय से कनिष्क के समय तक अर्थात् मोटे तौर पर ई० पू० २०० से ई०प० २०० तक बौद्ध धर्म का प्रचार उत्तरी भारत में बड़ी प्रबलता के साथ हो रहा था। इन चार सौ वर्षों की बनी हुई मूर्तियों, स्तूपों और मन्दिरों के जो भग्नावशेष तथा शिलालेख. मिले हैं, वे सब प्रायः बौद्ध धर्म सम्बन्धी हैं । पर इससे यह न समझ लेना चाहिए कि हिन्दू या ब्राह्मण धर्म उस समय बिलकुल लुप्त हो गया था । यज्ञ आदि उस समय भी होते थे, पर अधिक. नहीं। हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा भी लुप्त नहीं हुई थी। इसका सबूत पुष्यमित्र के अश्वमेध यज्ञ, एन्टिएल्काइडस के बेस-- नगरवाले शिलालेख, कैडफाइसिज द्वितीय तथा वासुदेव के सिक्कों और वासिष्क के मथुरावाले यूप-स्तंभ से मिलता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जो बौद्ध धर्म किसी समय सारे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com