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बौर-कालीन भारत
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दोनों भौंहों के बीच में बालों की एक गोलाकार बिन्दी अर्थात् ऊर्णा भी रहती है। गान्धार मूर्तियों की तरह बुद्ध के दोनों कन्धों से एक चादर पैर तक लटकती रहती है। किन्तु कपड़े की बारीकी वैसी खूबी के साथ नहीं दिखलाई गई, जैसी गुप्त काल की मूर्तियों में है। मूर्ति के सिर के चारों ओर एक बिलकुल सादा तथा अलंकार-रहित प्रभामण्डल भी रहता है। बाद को गुप्त काल में यही प्रभामण्डल सादा नहीं, किन्तु बेल-बूटों से खूब सजा हुआ मिलता है। इसके सिवा कुषण काल की मूर्तियों में वह गंभीरता, शान्ति तथा चित्ताकर्षक भाव नहीं है, जो गुप्त काल की मूर्तियों में है। कुषण काल की मूर्तियों में जो कुछ विदेशी भाव थे, वे गुप्त काल को मूर्तियों से बिलकुल लुप्त हो गये। गुप्त काल का इतिहास हमारे विषय के बाहर है; इससे उस काल की शिल्प कला के सम्बन्ध में हम विशेष नहीं लिखना चाहते।
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