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शिल्प-कला की दशा पीले पत्थर की मूर्तियाँ बनाते थे। अशोक का सारनाथवाला शिला-स्तंभ भी इसी पत्थर का बना हुआ है। परन्तु, जैसा कि ऊपर कहा गया है, धनी मनुष्य प्रायः मथुरा की बनी हुई मूर्तियाँ ही अधिक पसन्द करते थे और वहीं से मँगवाकर सारनाथ में स्थापित करते थे। सारनाथ की बनी हुई कुषण काल की मूर्तियों पर भी कुछ कुछ यूनानी प्रभाव दिखाई देता है।
अमरावती-मदरास प्रान्त के गुन्टूर जिले में कृष्णा नदी के किनारे अमरावती नगरी भी कुषण काल में मूर्ति निर्माण-कजा का एक केन्द्र थी। यहाँ एक स्तूप के ध्वंसावशेष में संगमरमर की बहुत सी मूर्तियाँ हैं। वे इतनी उत्तम हैं कि मर्मज्ञों की राय में वे भारतीय मूर्तिकारी की पराकाष्ठा हैं। उनकी शैली गन्धार
और मथुरा की शैलियों से मिलती है। स्वदेशी भावों की प्रधानता होते हुए भी यूनानी मूर्तिकारी का उन पर जो प्रभाव पड़ा है, उसका पता सहज में लग सकता है। __स्वदेशी कुषण-मूर्तिकारी की विशेषताएँ-गान्धार मूर्तिकारी की तरह मथुरा, सारनाथ तथा अमरावती की मूर्तिकारी में भी एक विशेष बात ध्यान देने योग्य है। इसी काल में हमें पहले पहल बुद्ध की मूर्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं। इन स्थानों में भी कुषण काल के पहले की बुद्ध की कोई मूर्ति नहीं मिलती । गन्धार देश में केवल बौद्ध धर्म सम्बन्धी मूर्तियाँ मिलती हैं; किन्तु मथुरा तथा सारनाथ में कुषण काल की बौद्ध, जैन और हिन्दू तीनों धर्मों से सम्बन्ध रखनेवाली मूर्तियाँ मिलती हैं। गान्धार मूर्तियों की तरह मथुरा आदि में भी कुषण-काल की बौद्ध मूर्तियों के सिरों पर एक उष्णीश (जटा) है; किन्तु बाल घूघरवाले नहीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com