________________
३५१
शिल्प कला को दशा से पढ़ रहे हैं। किसी में वे अपनी कौमार अवस्था में पलंग पर तकिये के सहारे लेटे हुए खियों का गाना-बजाना सुन रहे हैं । किसी में वे गृह त्यागकर जंगल को जा रहे हैं । किसी में वे तपस्या कर रहे हैं; यहाँ तक कि तपस्या करते करते वे सूखकर कॉटा हो गये हैं। किसी में वे बोधि वृक्ष के नीचे बैठे हुए आत्म-ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। किसी में मार तथा उसकी सेना उन पर आक्रमण कर रही है। किसी में वे अपने पाँचो शिष्यों को अपने धर्म का प्रथम उपदेश दे रहे हैं। किसी में उन के दर्शनार्थ इन्द्र आ रहे हैं। किसी में बुद्ध का निर्वाण हो रहा है, और किसी में उनका शव दिखलाया गया है, आदि। ___स्वदेशी कुषण मूर्तिकारी-इसके मूल में स्वदेशी भावों की प्रधानता है । इस पर यूनानी मूर्तिकारी का प्रभाव कुछ न कुछ अवश्य पड़ा है; किन्तु वह इतना थोड़ा है और स्वदेशी भावों में इतना डूब सा गया है कि सहसा ज्ञात नहीं होता । इसकी उत्पत्ति तथा ईसवी प्रथम तीन शताब्दियों में अधिकतर प्रचार मथुरा, सारनाथ और अमरावती में था ।
मथुरा-ईसवी प्रथम तीन शताब्दियों में मथुरा बहुत बढ़ी चढ़ी नगरी थी। कुषण वंश के राजाओं के अनेक शिलालेख यहाँ मिले हैं, जिनसे पता लगता है कि उनके समय में मथुरा बहुत महत्व का स्थान था। यहीं पर कुषण वंश के महाराज कनिष्क की कहे आदम मूर्ति, कुछ वर्ष हुए, पाई गई थी; और यहीं पर शुद्ध संस्कृत भाषा का पहला शिलालेख मिला था, जो कुषण वंश के महाराज वासिष्क के समय का है । कुषण काल में मथुरा नगरी बौद्ध,जैन तथा हिन्दू इन तीनों धर्मों का केन्द्र और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com