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बौद्ध-कालीन भारत
३४८ हुआ । इनमें से बहुत से यूनानियों ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। प्राचीन काल का शुद्ध बौद्ध मत, जो एक प्रकार से निराकार उपासना का क्रम था, उन विदेशियों की समझ में न आ सकता था । अतएव उन लोगों ने बुद्ध भगवान् की साकार उपासना करना प्रारंभ किया। इसके लिये उन्होंने अपने यूनानी कारीगरों से बुद्ध भगवान् की मूर्तियाँ बनवाई । उस समय तक बुद्ध की कोई मूर्ति नहीं बनी थी; इससे उन यूनानियों के सामने बुद्ध की मूर्ति का कोई आदर्श न था । स्वभावतः उन लोगों ने यूनान की मूर्ति-कला के आदर्श पर ही बुद्ध की मूर्तियाँ गढ़ने का प्रयत्न किया। इस काम के लिये उन्होंने यूनान के सूर्य देवता "अपोलो" की मूर्ति को अपना आदर्श माना । इसी लिये गांधार मूर्तिकारी में बुद्ध की मूर्तियाँ अपोलो देवता की मूर्तियों से बहुत कुछ मिलती जुलती हैं। इन सब मूर्तियों में बुद्ध भगवान की युवावस्था दिखलाई गई है। उनके सिर पर उष्पीश (पगड़ी) के आकार की एक जटा रहती है, जो "बुद्ध" का एक प्रधान लक्षण है। जटा के बाल घुघराले और दाहिनी ओर को मुड़े हुए होते हैं। दोनों भौंहों के बीच में बालों की एक गोल बिन्दी रहती है, जिसे "ऊर्णा" कहते हैं । बुद्ध के मस्तक पर यह ऊर्णा उनके जन्म से थी और महापुरुष का एक प्रधान लक्षण समझी जाती थी । बुद्ध भगवान् के दोनों कन्धों से पैरों तक एक चादर लटकती रहती है, जिसकी सिकुड़न और उतार-चढ़ाव बहुत सफाई के साथ दिखलाये होते हैं । यहाँ तक कि उससे शरीर की बनावट और गठन बहुत ही खूबी के साथ प्रकट होती है। गान्धार मूर्तिकारी में बुद्ध कभी बैठे हुए और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com