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साहित्यिक दशा गर्ग के विषय में इससे कुछ अधिक वृत्तान्त विदित है। गर्ग उन ग्रन्थकारों में हैं, जिनसे हम ई० पू० दूसरी शताब्दी के भारतवर्ष पर यूनानियों के आक्रमण का वृत्तान्त जान सकते हैं। यद्यपि यूनानी म्लेच्छ थे, तो भी गर्ग उनका सम्मान करते थे । उनका निम्नलिखित वाक्य प्रसिद्ध है और बहुधा उद्धृत किया जाता है-“यवन (यूनानी) लोग म्लेच्छ हैं, तथापि वे ज्योतिष शास्त्र अच्छी तरह से जानते हैं; अतः उन का ब्राह्मण ज्योतिषियों से बढ़कर और ऋषियों की तरह सम्मान किया जाता है ।" डाक्टर कर्न ने गर्ग का समय पहली शताब्दी माना है। __उक्त सिद्धान्तों में से ब्रह्म, सूर्य, वशिष्ठ, रोमक और पुलिश नामक पाँच सिद्धान्त “पंच सिद्धान्त" के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्हीं पाँचो सिद्धान्तों के आधार पर छठी शताब्दी में वराहमिहिर ने अपनी "पंच सिद्धान्तिका" लिखी थी।
मालूम होता है कि प्राचीन "ब्रह्म सिद्धान्त” का स्थान ब्रह्मगुप्त के प्रसिद्ध ग्रन्थ "स्फुट ब्रह्मसिद्धान्त" ने ले लिया है । एलबेरूनी ने ग्यारहवीं शताब्दी में इस "स्फुट ब्रह्मसिद्धान्त" की एक प्रति पाई थी। उसने इसका उल्लेख अपनी भारत यात्रा में किया है। "सूर्य सिद्धान्त" प्रसिद्ध ग्रन्थ है; पर उसमें इतनी बार परिवर्तन और परिवर्धन हुए हैं और वह इतनी बार संकलित किया गया है कि अब वह अपने मूल रूप में नहीं है। हम इस मूल ग्रन्थ के समय के सम्बन्ध में इससे अधिक और कुछ नहीं कह सकते कि यह इसी बौद्ध काल में बना होगा; और सम्भवत अन्तिम बार पौराणिक काल में इस ने यह रूप प्राप्त किया होगा। एलबेरूनी "वशिष्ठ सिद्धान्त” को विष्णुचन्द्र का बनाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com