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बौख-कालीन भारत
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हुआ बतलाता है। पर ब्रह्मगुप्त का मत है कि विष्णुचन्द्र ने इस प्राचीन ग्रन्थ का केवल संशोधन किया था; और यही बात ठीक जान पड़ती है। आज कल वशिष्ठ सिद्धान्त के नाम से जो ग्रन्थ मिलता है, वह निस्सन्देह आधुनिक है। रोमक सिद्धान्त को ब्रह्मगुप्त और एलबरूनी दोनों ही श्रीसेन का बनाया हुआ कहते हैं। आज कल एक रोमक सिद्धान्त मिलता है, जिसमें ईसा मसीह की जन्मपत्री, बाबर के राज्य का वर्णन तथा अकबर की सिन्धविजय दी है। "पुलिश सिद्धान्त” से एलबेरूनी परिचित था । उसने इसकी एक प्रति ली भी थी; और वह इसे पालिस नामक एक यूनानी का बनाया हुआ बतलाता है। यही पाँचो सिद्धान्त हैं, जिन्हें वराहमिहिर ने ईसवी छठी शताब्दी में संकलित किया था । डाक्टर कर्न ने पंच-सिद्धान्तिका का समय गर्ग और वराहमिहिर के बीच में अर्थात् सन् ८५ ई० के लगभग माना है।
अन्य शास्त्रों के ग्रन्थ-इस काल में अन्य शास्त्रों के भी अनेक ग्रन्थ वर्तमान थे, जो अब अप्राप्य हैं। नग्नजित् ने गृहनिर्माण, पत्थर की मूर्तियाँ बनाने, चित्रकारी तथा अन्य ऐसी ही कलाओं के ग्रन्थ बनाये थे। इस काल में, जब कि देश में चारो ओर चिकित्सालय स्थापित थे, वैद्यक शास्त्र ने भी बहुत उन्नति की थी। कहा जाता है कि प्रसिद्ध चरकसंहिता के रचयिता चरक कनिष्क के दरबार के राजवैद्य थे।*
* V. Smith's Oxford History of India; p. 135. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com