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बौद्ध-कालीन भारत
३४२. थे । उनका लिखा हुआ "महाविभाषा शास्त्र" महायान पन्थ के सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है ।
ज्योतिष शास्त्र की उन्नति इस काल में सब से अधिक उन्नति ज्योतिष शास्त्र की हुई । ज्योतिष के सब से प्राचीन ग्रन्थ, जिनके विषय में हम लोगों को कुछ मालूम है या जो हम लोगों को आजकल प्राप्त हैं, इसी काल के हैं। प्राचीन हिन्दुओं ने अठारह प्राचीन सिद्धान्त अर्थात् ज्योतिष के ग्रन्थ लिखे थे; पर उनमें से अधिकांश अब लुप्त हो गये हैं। वे अठारह प्राचीन सिद्धान्त ये हैं--(१) पराशर सिद्धान्त, (२) गर्ग सिद्धान्त, (३) ब्रह्म सिद्धान्त, (४) सूर्य सिद्धान्त, (५) व्यास सिद्धान्त, (६) वशिष्ठ सिद्धान्त, (७) अत्रि सिद्धान्त, (८) कश्यप सिद्धान्त, (९) नारद सिद्धान्त, (१०) मरीचि सिद्धान्त, (११) मनु सिद्धान्त, (१२)
आंगिरस सिद्धान्त, (१३) रोमक सिद्धान्त, (१४)पुलिश सिद्धान्त, (१५) च्यवन सिद्धान्त, (१६) यवन सिद्धान्त, (१७) भूगु सिद्धान्त और (१८) सौनक या सोम सिद्धान्त ।
इस काल में भारतवासियों ने ज्योतिष शास्त्र का अधिकतर ज्ञान यूनानियों से प्राप्त किया था। उक्त अठारह सिद्धान्तों में पराशर सिद्धान्त और उसके उपरान्त गर्ग सिद्धान्त सब से प्राचीन है। कहा जाता है कि पराशर का मूल ग्रन्थ "पराशर तन्त्र" था जो अब लुप्त हो गया है । वराहमिहिर ने अपनी "बृहत् संहिता" में उसके अनेक वाक्य और कहीं कहीं अध्याय तक उद्धृत किये हैं। पराशर में पश्चिमी भारतवर्ष में यवनों या यूनानियों के होने का उल्लेख है, जिससे सूचित होता है कि यह ग्रन्थ ई० पू० २०० के बाद का है।
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