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बौद्ध-कालीन भारत
३४० कनिष्क के समय में संस्कृत साहित्य-कनिष्क के समय में संस्कृत का बहुत प्रचार था। उस समय बौद्ध धर्म की भाषा पाली की जगह संस्कृत हो गई थी। बौद्ध धर्म के जितने ग्रन्थ उस समय रचे गये, वे सब संस्कृत में हैं। कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म की जो महासभा हुई थी, उसके निश्चय के अनुसार सूत्र-पिटक, विनय-पिटक और अभिधर्म-पिटक पर संस्कृत के एक एक लाख श्लोकों में तीन महाभाष्य रचे गये थे। कहा जाता है कि अश्वघोष, नागार्जुन और वसुमित्र नाम के बौद्ध ग्रन्थकार और प्राचार्य इसी समय में हुए हैं। इनमें से अश्वघोष संस्कृत के परम विद्वान, दार्शनिक और उद्भट कवि हो गये हैं । अश्वघोष का जन्म ब्राह्मण वंश में हुआ था। उनके पिता का नाम संघगुह्य था । वे साकेत या अयोध्या के निवासी थे । उनकी माँ एक वणिक् की कन्या थी। उन्होंने गौड़, तिरहुत और कामरूप (आसाम ) आदि देशों में जाकर विद्याध्ययन किया था। चीन और तिब्बत में मिले हुए कई ग्रन्थों से विदित होता है कि पाटलिपुत्र और नालन्द में भी उन्होंने कुछ दिनों तक निवास किया था। वे बहुत बड़े पण्डित थे। उन्होंने अनेक बौद्धों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था; पर अन्त में पार्श्व नामक पण्डित के द्वारा वे स्वयं ही परास्त होकर बौद्ध हो गये थे। तब से वे गान्धार देश में राजा कनिष्क के आश्रय में रहने लगे। चीनी और जापानी साहित्य में उनके समय-निरूपण के सम्बन्ध में भिन्न भिन्न कल्पनाएँ की गई हैं। किसी ने उन्हें बुद्ध-निर्वाण के ५०० वर्ष, किसी ने ६०० वर्ष और किसी ने ७०० वर्ष बाद माना है । पर इसमें सन्देह नहीं कि वे ईसा की पहली शताब्दी के बाद के नहीं
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