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साहित्यिक दशा
प्रायः वे सब के सब बौद्धों और जैनों के हैं। ये लोग उस जमाने में प्राकृत या आम बोल चाल की भाषा के पक्षपाती और संस्कृत के प्रचार के विरोधी थे। इसी से इनके शिलालेखों में संस्कृत की अवहेलना हुई है । ब्राह्मण लोग आज से दो हजार वर्ष पहले भी संस्कृत ही का विशेष आदर करते थे और उसी में शिलालेख खुदवाते तथा ग्रन्थ लिखते थे। वासिष्क के समय के जिस शिलालेख का ऊपर उल्लेख किया गया है, वह द्रोणल नामक ब्राह्मण का खुदवाया हुआ है। इसी से वह शुद्ध संस्कृत में है। इससे सिद्ध होता है कि उस काल में आम बोल चाल की भाषा प्राकृत और ब्राह्मणों तथा बौद्धों के साहित्य की भाषा संस्कृत थी।
शुंग और काण्व राजाओं के समय में संस्कृत साहित्यशुंग और काण्व वंशों के राजाओं के समय में संस्कृत भाषा और साहित्य का अच्छा प्रचार था । शुंग-वंशी राजा पुष्यमित्र के आश्रय में रहकर ही पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की थी। काण्व-वंशी राजाओं ने मनु-संहिता का संकलन कराया और रामायण तथा महाभारत को आधुनिक रूप में परिणत किया था।
आन्ध्र-वंशी राजाओ के समय में प्राकृत साहित्यआन्ध्र-वंशी राजाओं के समय में प्राकृत भाषा और साहित्य बड़ी उन्नत अवस्था में थे। विशेष करके इस वंश के राजा हाल शातवाहन का राज्य काल प्राकृत साहित्य के लिये बड़ी उन्नति का था। इस राजा ने स्वयं प्राकृत (प्राचीन महाराष्ट्री) भाषा में ७०० पद्य लिखे थे, जो “सप्तशतक" के नाम से प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि पैशाची भाषा में "बृहत्कथा" और "कातन्त्र" नामक संस्कृत व्याकरण की रचना भी इसी समय हुई थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com