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बौख-कालीन भारत
२९६. अज्ञात संवत् के १२२वें वष का है । यह अज्ञात संवत् भी वही है, जो गोंडोफ़र्निस के तख्त-बहाईवाले शिलालेख में है। उक्त पंजतारवाला शिलालेख “महाराज गुषन" ( कुषण ) के राज्य काल में खुदवाया गया था । इस "महाराज गुषन" का कोई नाम नहीं दिया गया है। पर संभवतः यह कैडफ़ाइसिज़ द्वितीय रहा होगा । अतएव इस शिलालेख के आधार पर यह निश्चित होता है कि कैडफाइसिज़ द्वितीय ने १२२-५८ = ६४ ई० के पहले ही पंजाब जीत लिया था। तक्षशिला की खुदाई के समय सर जान मार्शल को मिट्टी के एक घड़े में चाँदी के २१ सिक्के मिले थे * । इनमें गोंडोफ़र्निस तथा वीम कैडक्राइसिज़ दोनों के सिक्के थे। ऊपर कह आये हैं कि गोन्डोफ़र्निस ४५ ई० में राजगद्दी पर था और कैडफाइसिज प्रथम उसका समकालीन था । अतएव कैडफाइसिज़ द्वितीय का राज्य काल ४५ ई० के बाद निश्चित होता है । तक्षशिला से भगवान बुद्ध के अस्थिशेष के साथ जो खरोष्ठी लेख प्राप्त हुआ था और जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है, उससे भी यही सिद्ध होता है। यह लेख एजेस प्रथम के १३६ वें वर्ष में लिखा गया था। एजेस का संवत् वही है, जो विक्रम संवत् के नाम से प्रसिद्ध है और जो ई० पू०५८ से प्रारंभ होता है। यह लेख "महाराज राजातिराज देवपुत्र कुषाण" के राज्य काल का है और इसमें उसका उल्लेख भी है। १३६ में से ५८ निकाल देने पर ७८ ई० निकलता है और यही वीम कैडफाइसिज़ के राज्य काल का अन्तिम वर्ष माना गया है। यह मत उन लोगों का है, जो यह
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* Cambridge History of India, Vol I. P. 580. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com