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धार्मिक दशा धर्म की व्यवस्था बिगड़ने पर वे केवल धर्म की रक्षा के लिये समय समय पर बुद्ध के रूप में प्रकट हुआ करते हैं; और देवादिदेव बुद्ध की भक्ति करने से, उनके स्तूप की पूजा करने से, अथवा उन्हें भक्ति-पूर्वक दो चार पुष्प समर्पण कर देने से मनुष्य को सद्गति प्राप्त हो सकती है" *। मिलिन्द पन्हो (३-७-२) में यह भी लिखा है-"किसी मनुष्य की सारी उम्र दुराचरणों में क्यों न बीती हो, परन्तु मृत्यु के समय यदि वह बुद्ध की शरण में जाय, तो उसे अवश्य स्वर्ग की प्राप्ति होगी।" उसी ग्रन्थ (६-२-४ ) में नागसेन ने मिलिन्द से कहा है-“गृहस्थाश्रम में रहते हुए भक्ति के द्वारा निर्वाण पद पा लेना असंभव नहीं है।" बस यही भक्ति-मार्ग महायान की मुख्य विशेषता है ।
महायान पर भगवद्गीता का प्रभाव-बुद्ध भगवान् का प्राचीन मत शुद्ध संन्यास-मार्ग था। इस संन्यास-मार्ग में भक्ति मार्ग: की उत्पत्ति आप ही आप, बिना किसी बाहरी प्रभाव के हो गई. हो, यह समझ में नहीं आ सकता । अतएव सिद्ध होता है कि इस पर अवश्य कोई बाहरी प्रभाव पड़ा । बौद्ध ग्रन्थों से भी यही सूचित होता है। तिब्बती भाषा के तारानाथ वाले बौद्ध धर्म के इतिहास से पता लगता है कि प्राचीन बौद्ध धर्म में महायान के नाम से जो नया सुधार हुआ, उसके आदि कारण कृष्ण और गणेश थे। तारानाथ के ग्रन्थ में लिखा है-"महायान पन्थ के मुख्य संस्थापक नागार्जुन का गुरु राहुलभद्र नामक बौद्ध पहले
* देखिये सद्धर्मपुंडरीक (२, ७७-६८; ५, २२; १५, ५-२२.) तथा मिलिन्द पन्हो ( ३-७-७.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com