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पाँचवाँ अध्याय
सांपत्तिक दशा इस काल की सांपत्तिक दशा के बारे में भी अब तक बहुत थोड़ी बातें मालूम हुई हैं। इस सम्बन्ध में जो कुछ पता लगा है, वह केवल सिक्कों और विदेशियों के इतिहास-ग्रन्थों से। इनसे दो बातों का काफी तौर पर पता लगता है। एक तो यह कि इस काल में विदेशों के साथ खूब व्यापार होता था; और दूसरे यह कि यहाँ जहाज़ खूब बनाये जाते थे और उनके द्वारा यहाँ का माल विदेशों में जाता था। विशेषतः आंध्र वंशी राजाओं के समय दक्षिणी भारत में और कुषण वंशी राजाओं के समय उत्तरी भारत में विदेशों के साथ खूब व्यापार होता था।
आन्ध्र राजाओं के समय दक्षिणी भारत का व्यापारइस राजवंश के वैभव का समय ईसवी दूसरी शताब्दी के प्रारंभ से तीसरी शताब्दी के अन्त तक माना जाता है। इनके कुछ सिकों पर जहाज के चित्र बने हुए हैं। इससे प्रतीत होता है कि आन्ध्र राजाओं का प्रभुत्व केवल स्थल पर ही न था, बल्कि उनकी विजय-पताका कदाचित् द्वीपों पर भी फहराती थी *। इन जहाजबाले सिक्कों से यह भी सिद्ध होता है कि कारोमण्डल किनारे के लोग ईसवी प्रथम शताब्दी में जहाजों द्वारा समुद्री व्यापार करते थे। इन्हीं सिक्कों को देखकर हावेल
•v. Smith's Early History of India. P. 203. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanb