________________
३३५
सांपरिक दशा साहब ने यह सिद्ध किया है कि हिन्दू लोग पूर्व काल में जहाजों द्वारा ईरान, अरब, बरमा, स्याम, चीन, रोम, यूनान तथा मित्राआदि देशों से व्यापार करते थे। इन सिकों के सिवा कारोमण्डल किनारे में कुसंबर और पल्लव लोगों के भी सिके मिले हैं । कुसंबर लोग सातवीं शताब्दी के पहले कई सौ वर्षों तक यहाँ रहे थे। इनके सिकों के बारे में पुरातत्ववेत्ता ईलियट साहब लिखते हैं-"सिक्कों पर दो मस्तूलवाले जहाज चित्रित हैं। कुसंबर लोग अपने ही जहाजों द्वारा अन्य देशों से समुद्री व्यापार करते थे।" आन्ध्र राजाओं के समय में भारतवर्ष के राजदूत पश्चिमी एशिया, यूनान, रोम, मिस्र, चीन आदि देशों को जहाजों पर जाते थे । भारत से रोम को मसाले आदि भेजे जाते थे और वहाँ से सोने के सिके यहाँ आते थे । सन् ६८ ईसवी में रोमवालों के अत्याचरों से बचने के लिये कुछ यहूदी लोग रोम से दक्षिणी भारत के पूर्वी भाग ( मालाबार ) में आ बसे थे । ये सब बातें भारतीय जहाजों की ही बदौलत हुई थीं। डाक्टर भाण्डारकर का मत है कि आन्ध्र काल में समुद्री व्यापार बहुत ही उन्नत दशा में रहा होगा। स्मिथ साहब भी लिखते हैं कि दक्षिण की तामिल रियासतों के पास बड़ी ही शक्ति-शालिनी समुद्री सेनाएँ और जहाजी बड़े थे। तामिल देश में लोग दूर दूर के देशों से जहाजों द्वारा भारतवर्ष की अपूर्व वस्तुएँ, मसाले और मोती आदि लेने आते थे । इन वस्तुओं की कीमत वे सोनेचाँदी के रूप में चुकाते थे । दक्षिण के पाण्ड्यवंशी राजा पाण्डियोन ने ई० पू० २० में रोम के सम्राट् आगस्टस सीजर के दरबार
में अपना राजदूत भेजा था । दक्षिण के पूर्वी समुद्र तट के लोग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com