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बौद्ध-कालीन भारत
३३६ बारहो महीने अपने जहाजों पर विदेश आया-जाया करते थे।
कुषण राजाओं के समय उत्तरी भारत का व्यापारजिस समय दक्षिण में आन्ध्रवंशी राजाओं का राज्य था, उसी समय उत्तरी भारत में कुषण-वंशी राजाओं का प्रभुत्व था । रोम के सम्राटों की पताका भी उस समय भूमण्डल के कितने ही देशों पर फहरा रही थी। केवल चीन और भारतवर्ष ही स्वतन्त्र थे। जिस समय रोम में सम्राट हेड्रियन राज्य करता था,. उस समय उत्तरी भारत में कनिष्क के शासन का डंका बजता था । उन दिनों जहाजी व्यापार की बदौलत रोम से अनन्त सोना इस देश में आता था। इस बात के सबूत में हेड्रियन के सोने के सिक्के हमारे देश में मौजूद हैं। इस देश से प्रायः मसाले, इत्र, जवाहिरात, रेशम, मलमल और रूई आदि वस्तुएँ हमारे जहाजों पर विदेशों को जाती थीं और उनके बदले में खरा सोना आता था। रोम के सम्राट् औलियन के समय में भारतीय रेशम वहाँ के बाजारों में सोने के मोल बिकता था। इस प्रकार रोम का धन भारत को जाता देख, वहाँ के सम्राट टाइबेरियस सीजर ने यह घोषणा कर दी थी कि पतले रेशम से अंग भली भाँति नहीं ढकता; अतएव उसका पहनना मना है। ईसवी प्रथम शताब्दी में रोम के इतिहासकार प्लीनी ने अपने देश-बान्धवों को धिक्कारा था कि तुम विदेशी माल लेकर प्रति वर्ष करोड़ों रुपये हिन्दुस्तान को भेज देते हो । विन्सेन्ट स्मिथ
• Tacitus, Annals, III, 53. (Periplus of the Erythraean Sea by, W. H. Schoff p. 219)
+ Pllny, VI, 26 (The Periplus of the Erythraean Sea, by W. H. Schoff. p. 219.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com