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परिणत हुआ लेता है। खचित्रित नहीं
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धाम्भिक दशा कुषणों के आक्रमण हुए। इनमें से बहुत से विदेशियों ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। ये विदेशी अपने साथ भिन्न भिन्न प्राचारविचार, रीति-रवाज और पूजा की विधि भारतवर्ष में लाये थे । इन विदेशियों के धर्म, विश्वास और रीति-रवाज का बौद्ध धर्म पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उस की प्राचीन शुद्धता और सरलता जाती रही। जिस समय बौद्ध धर्म दिग्विजय के लिये बाहर निकला और विदेशियों के साथ उसका सम्पर्क हुआ, उसी समय उसमें परिवर्तन का बीज बोया गया । परिवर्तन का यही बीज धीरे धीरे महायान संप्रदाय के रूप में परिणत हुआ। इस परिवर्तन का एक प्रमाण बौद्ध काल की शिल्प कला में मिलता है। स्वयं बुद्ध भगवान की प्राचीन बौद्ध काल अथवा मौर्य काल की मूर्ति कहीं चित्रित नहीं मिलती। इसका एकमात्र कारण यही है कि पूर्वकालीन बौद्धों ने बुद्ध के “निर्वाण" को यथार्थ रूप में माना था। तब निर्वाण-प्राप्त देह की प्रतिमा भला वे क्यों बनाते ! प्राचीन बौद्ध काल में बुद्ध भगवान का अस्तित्व कुछ चिह्नों से सूचित किया जाता था; जैसे “बोधिवृक्ष", "धर्मचक्र" अथवा "स्तूप" ।.पर जब धीरे धीरे महायान संप्रदाय का जोर बढ़ा, तब गौतम बुद्ध देवता रूप में पूजे जाने लगे और उनकी मूर्तियाँ बनने लगीं।
हीनयान और महायान में भेद-हीनयान और महायान सम्प्रदायों में निम्नलिखित मुख्य भेद हैं
(१) हीनयान संप्रदाय के ग्रन्थ पाली भाषा में और महायान संप्रदाय के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं।
(२) हीनयान संप्रदाय में बुद्ध भगवान् के सिद्धान्त और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com