________________
३२७
धार्मिक दशा सौ वर्षों में बनी हुई इमारतों, स्तूपों और मन्दिरों के जो भमावशेष, शिलालेख तथा मूर्तियाँ मिलती हैं, उनसे बौद्ध मत का प्रचार पूरी तरह से प्रकट होता है। इस समय की प्रायः सभी चीजें बौद्ध धर्म-सम्बन्धी है। पर इससे यह न समझ लेना चाहिए कि उस समय हिन्दू या ब्राह्मण धर्म बिलकुल लुप्त हो गया था। यज्ञ आदि उस समय भी होते थे। हाँ, कदाचित् उतने अधिक न होते थे, जितने पहले हुआ करते थे। हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा भी लुप्त नहीं हुई थी। इसका सबूत कैडफाइसिज द्वितीय के सिक्कों से ही मिलता है। वह शिव का इतना भक्त था कि उसने अपने सिकों पर शिव की मूर्ति अंकित करा दी थी। महायान संप्रदाय की बातों से भी प्रकट होता है कि बौद्ध धर्म धीरे धीरे हिन्दू धर्म की ओर मुक रहा था; क्योंकि वह संप्रदाय वास्तव में बौद्ध धर्म की अपेक्षा हिन्दू धर्म से अधिक मिलता है। उसके ग्रन्थ पाली में नहीं, बल्कि संस्कृत में हैं। इसके सिवा इस समय के दो शिलालेख (एक गिरनार में रुद्रदामन का और दूसरा मथुरा में वासिष्क का) शुद्ध संस्कृत में हैं। इससे भी सिद्ध है कि धीरे धीरे ब्राह्मणों का प्रभाव बढ़ रहा था।
शुंग वंशी राजाओं के समय ब्राह्मण धर्म-अशोक ने अपने साम्राज्य में पशु-बलि बन्द कर दी थी। उस समय के ब्राह्मण बलिप्रदान करना बहुत पुण्य का काम समझते थे। अशोक ने पशुबलि के सम्बन्ध में जो निषेध-सूचक आज्ञा निकाली थी, वह कदाचित् ब्राह्मणों के ही विरुद्ध थी। एक शूद्र राजा की आज्ञा से ब्राह्मणों की चिरप्रचलित प्रथा बन्द हो गई थी; इससे वे लोग अवश्य ही असन्तुष्ट थे। पर वे कुछ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com