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चौथा अध्याय
सामाजिक दशा मौर्य साम्राज्य के अन्त से गुप्त साम्राज्य के उदय तक का इतिहास बहुत ही अनिश्चित अवस्था में है। इस समय का इतिहास जानने के लिये केवल तीन साधन हैं-(१) सिके, जो उत्तरी भारत में अधिकता से पाये गये हैं, (२) शिलालेख और (३) विदेशियों के इतिहास-ग्रंथों में भारत का उल्लेख । पर इन तीनों साधनों से भी तत्कालीन भारतवर्ष की सामाजिक दशा का कुछ विशेष पता नहीं लगता। जो कुछ पता लगता भी है, वह नहीं के बराबर है। फिर भी इन तीनों साधनों के आधार पर उस समय की सामाजिक दशा का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जाता है।
सामाजिक उथल पुथल-ध्यान देने योग्य पहली बात यह है कि उस समय विदेशियों के लगातार आक्रमणों से समाज में बड़ी उथल पुथल मच रही थी। यवन (यूनानी), शक, पार्थिव और कुषण आदि विदेशी लोग धीरे धीरे हिन्दू और बौद्ध धर्म ग्रहण कर रहे थे और पूर्ण रूप से भारतीय होते जा रहे थे । मिनेंडर, एन्टिएल्काइडस, रुद्रदामन , कैडफ़ाइसिज़ द्वितीय, कनिष्क, हुविष्क, और वासुदेव आदि इसके उदाहरण हैं। विदेशी लोग आये तो थे भारत को जीतने, पर भारतीय सभ्यता से स्वयं ही जीत लिये गये। विजेताओं ने अपना धर्म, कर्म और सभ्यता छोड़कर विजित भारतवासियों का धर्म, कर्म और सभ्यता ग्रहण कर ली।
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