________________
३०१
राजनीतिक इतिहास
कुल के थे । इन कुषण राजाओं के नाम भी शिलालेखों में "शाही शाहानुशाही" शब्दों सहित पाये जाते हैं । “देव पुत्रस्य, राजातिराजस्य, शाहे:” आदि इन्हीं राजाओं के नामों के साथ लगे हुए हैं। “देवपुत्र शाहि शाहानुशाहि" राजा के साथ समुद्रगुप्त की सन्धि होने का उल्लेख इलाहाबाद के स्तंभ पर भी है। इससे यह सिद्ध हो सकता है कि समुद्रगुप्त के समय में भी कुषण वंश के राजा वर्तमान थे। समुद्रगुप्त के पश्चात् इन राजाओं का नाम कहीं नहीं पाया जाता । समुद्रगुप्त के समय में कुषण वंश का अंतिम राजा वासुदेव राज्य करता रहा होगा। मथुरा के पूर्वोक्त लेख के अक्षर भी वासुदेव के अन्यत्र पाये हुए लेखों के अक्षरों से मिलते हैं । शक सं० ३०० के लगभग समुद्रगुप्त की मृत्यु हुई। इससे भाण्डारकर महाशय का यह अनुमान है कि मथुरा का लेख भी शक सं० २९९ में ही लिखा गया होगा; और उस समय वासुदेव का राज्य रहा होगा। यदि यह सच हो, तो वासुदेव के अन्य लेख, जो ७४ से ९८ वर्ष तक के पाये जाते हैं, अवश्य ही शक सं० २७४ से २९८ तक लिखे गये होंगे। अर्थात् कनिष्क शक सं० २०० (२७८ ई०) में गद्दी पर बैठा होगा।
(५) पाँचवाँ मत यह है कि कनिष्क ने शक संवत् प्रचलित किया। इस मत के अनुसार कनिष्क ७८ ई० में सिंहासन पर बैठा; और तभी से शक संवत् प्रचलित हुआ । शक क्षत्रपों में इसका प्रचार अधिक था; इससे कनिष्क का संवत् “शक संवत्" के नाम से विख्यात हुआ । इस मत के प्रधान पोषक श्रीयुक्त ओल्डेनबर्ग, टामस और राखालदास बैनर्जी हैं। कैडफ़ाइसिन द्वितीय के वर्णन में इस मत का पूरी तरह से उल्लेख किया गया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com