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प्रजातंत्रया गण राज्य
यौधेयों का राज्य कहाँ तक फैला हुआ था, इसका पता उन के शासनों और शिलालेखों से लगता है। उनका एक शिलालेख भरतपुर रियासत के विजयगढ़ नामक स्थान में और उनके नाम की मिट्टी की मुहरें लुधियाना जिले के सोनैत नामक स्थान में पाई गई हैं। उनके सिके प्रायः पूर्वी पंजाब तथा सतलज और जमुना के बीचवाले प्रदेश में पाये जाते हैं। अतएव उनका राज्य मोटे तौर पर सतलज के दोनों किनारों से पूरब की ओर यमुना नदी तक
और दक्षिण की ओर राजपूताने तक था । यौधेय लोग अपने मुखिया या प्रधान को"महाराज" और "महासेनापति" कहते थे। "महाराज" या "महासेनापति" लोगों के द्वारा चुना जाता था।
मालव गण-पाणिनि के समय में मालव लोगों का भी "आयुध-जीवि संघ" था; अर्थात् वे पंजाब में सिपहगिरी करते थे* । पाणिनि के समय के मालवगण कदाचित् उन मालवों के पूर्व पुरुष थे, जिन्हें सिकन्दर ने जीता था। जयपुर रियासत के "नागर" नामक नगर के पास एक प्राचीन स्थान पर मालवों के करीब छः हजार सिक्के मिले हैं। उन सिक्कों पर "मालवाह्ण जय", "मालवानां जय" और "मालव गणस्य जय" लिखा है । कुछ सिक्कों पर "मपय", "मजुप,” "मगजस" आदि शब्द भी लिखे हैं, जो कदाचित् मालव गण के सरदारों या मुखियों के नाम हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि जिन मालवों ने ये सिक्के चलाये थे, वे वही मालव हैं या नहीं, जिनका उल्लेख पाणिनि ने अष्टाध्यायी में किया है ।
इन सिक्कों की प्राचीनता के बारे में पुरातत्व-पण्डितों में मत* Inatan Antiquary 1913, p. 200.
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