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प्रजातंत्रया गणराज्य
था। यह उनके महत्त्व का ही परिणाम है कि वे जिस प्रान्त में जाकर बसे, वह प्रान्त ही उनके नाम से "मालवा" कहलाने लगा। दोनों गण राज्यों ने विदेशी शक क्षत्रपों से युद्ध किया था।मालवों ने नहपान की सेना का और यौधेयों ने रुद्रदामन की सेना का पूरा पूरा मुकाबला किया था। पर दोनों ही पराजित हो गये । कदाचित् अन्य गण राज्यों को भी विदेशियों का सामना करना पड़ा था; और उनकी भी वही हालत हुई, जो यौधयों तथा मालवों की हुई थी। इन गण राज्यों के अधःपतन और नाश का एक कारण गुप्त साम्राज्य का उदय भी था। मौर्य साम्राज्य के पहले से ही हर एक सम्राट् , राजनीतिज्ञ और साम्राज्यवादी का यही उद्देश्य था कि ये प्रजातन्त्र या गण राज्य सदा के लिये निर्मुल हो जायँ । चन्द्रगुप्त मौर्य अपने कुटिल मन्त्री चाणक्य की सहायता से इन प्रजातन्त्र राज्यों को छिन्न भिन्न करने में बहुत कुछ सफल हुआ था। गुप्त वंश के सम्राट भी इसी सिद्धान्त पर चलते थे । समुद्रगुप्त के इलाहाबादवाले शिलालेख से पता लगता है कि उस प्रतापी सम्राट ने “यौधेय", "मालव" और "आर्जुनायन" इन तीन गणों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। इस प्रकार बाहर से विदेशियों के आक्रमण के कारण तथा अन्दर से साम्राज्य के उदय और वृद्धि के कारण प्राचीन भारत के इन प्रजातन्त्रों या गण राज्यों का सदा के लिये लोप हो गया।
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