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प्रजातंत्रयागराज्य बे दूसरे सिक्कों की अपेक्षा प्राचीन माने जाते हैं। उनके दूसरे सिकों का समय कनिंघम के मत से ई० पू० १५० * तथा रैप्सन के मत से ई० पू० १००+ है। अतएव उनके प्राचीन से प्राचीन सिकों का समय ई० पू० दूसरी शताब्दी माना जाता है । उनका राज्य मोटे तौर पर गंगा और यमुना के उत्तरी दोआब में हिमालय पर्वत की घाटी में फैला हुआ था; अर्थात् उनके राज्य की पूर्वी सीमा गंगा, दक्षिणी और पश्चिमी सीमा हस्तिनापुर, सहारनपुर और अम्बाला, उत्तरी और पूर्वी सीमा हिमालय की तराई तथा उत्तरी और पश्चिमी सीमा अम्बाले से हिमालय की तराई तक थी। विष्णु पुराण में “कुलिन्दोपत्यका" शब्द आया है, जिससे सूचित होता है कि "कुणिन्द" या "कुलिन्द" लोग हिमालय की तराई में रहते थे ।
वृष्णि-सिर्फ एक सिक्क में वृष्णि गण का नाम आया है। उस सिक्क पर जो लेख है, उसे कनिंघम साहब ने इस प्रकार पढ़ा है-"वृष्णिराजज्ञा गणस्य भुबरस्य" । पर बर्मा
और रैप्सन ने वह लेख इस प्रकार पढ़ा है-"वृष्णिराजज्ञा गणस्य त्रतरस्य" + । रैसन के मत से "राजज्ञ" शब्द का वही अर्थ है, जो "क्षत्रिय" शब्द का है । अतएव यह सिक्का “वृष्णि" नाम के क्षत्रिय गण का है । वृष्णि गण का उल्लेख बाण-कृत “हर्षचरित"
* Archaeological Survey Report, XIV. p. 134. + Rapson's Indian Colns. p. 12. * Cunningham's Colns of Ancient Indian. p. 710.
+J. R. A. S. 1900, pp. 416, 420. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com