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प्रजातंत्रया गणराज्य में उन्होंने यह विक्रम सम्वत् भी चलाया * । पर डाक्टर पलीट और श्रीयुत भांडारकर का मत है कि उक्त वाक्यों से केवल यह सूचित होता है कि यह संवत् मालवों में प्रचलित था । इन वाक्यों से यह किसी तरह नहीं सूचित होता कि उन्होंने यह संवत् अपना स्वतन्त्र गण राज्य स्थापित करने के समय चलाया था । पर यह संवत् उनमें प्रचलित था, इसलिये इसका नाम मालव संवत् पड़ गया। मालव लोग चंबल और बेतवा नदियों के बीचवाले प्रदेश में रहते थे।
मालवों का राजनीतिक महत्व और स्वाधीन राज्य ईसवी चौथी शताब्दी तक बना रहा । अन्त में वे समुद्रगुप्त से पराजित हुए और गुप्त साम्राज्य में उन्होंने भी वही स्थान ग्रहण किया, जो यौधेयों ने किया था । . प्रार्जुनायन-आर्जुनायनों के थोड़े से सिक्के पाये गये हैं । उन पर "आर्जुनायनान" लिखा है । इन सिक्कों का समय ई० पू० प्रथम शताब्दी माना जाता है+। आर्जुनायनों का उल्लेख समुद्रगुप्त के इलाहाबादवाले शिलालेख में भी आया है। वे लोग भी समुद्रगुप्त से परास्त हुए थे और उन्होंने भी यौधेयों तथा मालवों की तरह गुप्त साम्राज्य की अधीनता स्वीकृत की थी। आर्जुनायनों के सिक्के कहाँ मिले थे, इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है।
-Indian Antiquary, 1913 p. 199. +J. R. A. S. 1914 pp. 413, 745, 1010,
Ibld 1915, pp. I38, 502. * Indian Antiquary. 1913: p. 162. + Rapson's Indian Colos. p. 11.
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