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बौद्ध-कालीन भारत
३१० "मालव-गण" "यौधेय-गण' आदि प्रयोग मिलते हैं। मौर्य काल के बाद के मुख्य गण राज्यों का विवरण यहाँ दिया जाता है ।
यौधेय गण-पाणिनि के ५-३-११४ और ५-३-११७ सूत्रों से पता लगता है कि पाणिनि के समय में यौधेय लोगों का “ आयुधजीवि संघ” था; अर्थात् वे शस्त्र के बल से जीविका निर्वाह करते थे। उनका विशेष वृत्तान्त केवल सिक्कों
और शिलालेखों से मिलता है। उनका प्राचीन से प्राचीन सिका लगभग ई० पू० १०० का है * । उनके सब से प्राचीन सिक्कों पर केवल “यौधेयन" (अर्थात् “यौधेयों का") लिखा मिलता है। बाद को उनके सिक्कों पर “यौधेयगणस्य जय" लिखा जाने लगा । यौधेयों की शक्ति का पता रुद्रदामन् के गिरनारवाले शिलालेख से लगता है । उसमें यौधेयों के बारे में लिखा है"सर्वक्षत्राविष्कृतवीरशब्दजातोत्सेकाविधेयानां यौधेयानाम्' अर्थात् "यौधेय सब क्षत्रियों में वीरता प्रकट करके उचित अभिमान के भागी हुए हैं"। रुद्रदामन् यौधेयों का शत्र था; अतएव शत्र के मुख से प्रशंसित होना वास्तविक शक्ति का सूचक है। उक्त शिलालेख में लिखा है कि रुद्रदामन ने यौधेयों को समूल नष्ट कर दिया था। पर सिक्कों और शिलालेखों से पता लगता है कि वे इस धक्के से किसी तरह सँभल गये और ईसवी चौथी शताब्दी तक बने रहे। यौधेयों का नाम समुद्रगुप्त के इलाहाबादवाले शिलालेख में भी आया है। उससे सूचित होता है कि वे समुद्रगुप्त को कर देते थे और उसे अपना सम्राट मानते थे।
: Rapson's Indian Colns. p. 15.
+ Epigraphia Indica VIII.. pp. 44-47. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com