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राजनीतिक इतिहास ई० पू० प्रथम शताब्दी में बारम्भ हुआ और इसी व्यापार के लिये कनिष्क ने सोने के सिके चलाये। इन सिकों पर केवल यूनानी अक्षर हैं। इसी से केनेडी साहब का अनुमान है कि ये सिक्के केवल व्यापार के लिये ढलवाये गये थे; क्योंकि पूर्वोक्त सब प्रदेशों के व्यापारी यूनानी भाषा जानते थे। इसी लिये कहा जाता है कि कनिष्क ई० पू० प्रथम शताब्दी में वर्तमान था और उसी ने विक्रम संवत् प्रचलित किया । पर डाक्टर फ्लीट का
आधार केवल दन्त-कथा है। यह दन्त-कथा उन चीनी ऐतिहासिक लेखों के विरुद्ध है, जिनका उल्लेख कैडफाइसिज प्रथम तथा कैडफ़ाइसिज़ द्वितीय के वर्णन में किया जा चुका है।
(२) दूसरा मत कनिंघम साहब का है । इस मत के अनुसार सेल्यूकस के संवत् से ४०० वर्ष छोड़कर कनिष्क तथा अन्य कुषण राजाओं के समय में काल-गणना की जाती थी। सेल्यूकस ई० पू० ३१२ में सिंहासन पर बैठा । अतः ४०३ में से ३१२ घटाकर ९१ ई० कनिष्क का राज्यारोहण काल मानना चाहिए ।
. (३) तीसरा मत विन्सेन्ट स्मिथ साहब का है। उनका कहना है कि लौकिक काल अथवा सप्तर्षि काल के ३००० वर्ष छोड़कर कुषण राजाओं के लेखों में काल-गणना की गई है। लौकिक काल का आरंभ ई० पू० २८७५ से होता है । अर्थात् कनिष्क का राज्य काल ३००३-२८७५ = १२८ ई० आता है । विन्सेन्ट स्मिथ ने सिकों के आधार पर यह भी लिखा है कि कनिष्क रोम के सम्राट हेड्रिअन और मार्कस ओरेलिअस का समकालीन था; अतएव वह सन् १२० या १२५ ई० में राजगद्दी पर बैठा था। मार्शल साहब ने भी तक्षशिला की खुदाई में मिले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com