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राजनीतिक इतिहास राधिकारियों के समय में ईरान के सस्सानियन बादशाहों ने हिन्दुस्तान पर हमला करके कदाचित् अपना राज्य यहाँ स्थापित किया। कुछ सस्सानियन सिके भी पाये गये हैं, जो वासुदेव के सिक्कों से बिलकुल मिलते जुलते हैं। इसके पश्चात् छोटे छोटे कुषण राजा काबुल और उसके आस पास के प्रान्तों में बहुत दिनों तक राज्य करते रहे; पर पाँचवीं शताब्दी में हूणों ने हमला करके उन्हें बिलकुल नेस्त-नाबूद कर दिया। वासुदेव के नाम से सूचित होता है कि कुषण राजा बाद को पूरे हिन्दू हो गये थे; यहाँ तक कि वे अपना नाम भी हिन्दू ढंग का रखने लगे थे। यद्यपि वासुदेव के नाम से सूचित होता है कि वह कदाचित् वैष्णव था, पर उसके सिक्कों पर नन्दी सहित शिव की मूर्ति है । उसके शिलालेख ७४ से ५८ वर्ष तक के पाये गए हैं; अतएव हुविष्क के बाद मोटे तौर पर उसने ४० वर्षों तक राज्य किया । इस हिसाब से उसका राज्य-काल १४०-१८० ई० होता है।
ईसा की तीसरी शताब्दी अंधकारमय-इस बात का एक भी चिह्न नहीं है कि वासुदेव की मृत्यु के बाद कोई सम्राट् या बड़ा राजा रहा हो। मालूम होता है कि कुषण साम्राज्य का अधःपतन होते ही उत्तरी भारत छोटे छोटे स्वतन्त्र राज्यों में बँट गया। इसी समय आन्धू राजाओं का भी अधःपतन हुआ। विष्णु पुराण में अभीर, गर्दभिल, शक, यवन, वाह्नीक आदि विदेशी राजवंशों के नाम मिलते हैं, जो आन्धों के बाद राज्याधिकारी हुए थे । ये राजवंश अधिकतर एक दूसरे के समकालीन थे। इनमें से कोई राजवंश ऐसा न था जो अन्य वंशों पर प्रभुत्व या दबाव रख सकता । अस्तु; ईसवी तृतीय शताब्दी में जितने राज
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