________________
३०३
राजनीतिक इतिहास कनिष्क का धर्म-कनिष्क ने अपने जीवन के उत्तर भाग में बौद्ध धर्म ग्रहण किया । बौद्ध ग्रन्थों में उसकी बड़ी प्रशंसा की है और वह "द्वितीय अशोक" कहा गया है । उसने बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार किया। पर कनिष्क के सिक्कों से पता चलता है कि वह बौद्ध, हिन्दू, यूनानी और पारसी सभी धर्मों का आदर करता था । उसके सिक्कों पर हीलिभोस (सूर्य), सलीनी (चन्द्र), और हेराक्लीज़ नामक यूनानी देवताओं, माओ (चन्द्र ), अग्नि, अथ्रो, मीरोधादि पारसी देवताओं तथा शिव और बुद्ध की मूर्तियाँ पाई जाती हैं। संभव है, कनिष्क वौद्ध धर्म में आने के बाद भी अन्य धर्मों के देवताओं को मानता रहा हो । कनिष्क ने बौद्ध धर्म कब ग्रहण किया, यह निश्चय करना असंभव है; पर यह घटना अवश्य उस समय हुई होगी, जब वह राजगद्दी पर कुछ वर्षों तक रह चुका होगा। कनिष्क और उसके उत्तराधिकारी हुविष्क के सिक्कों से पता चलता है कि उन दिनों बौद्ध धर्म में बड़ा परिवर्तन हो गया था और उस पर अन्य धर्मों तथा संप्रदायों का बहुत प्रभाव पड़ने लगा था। यह प्रभाव बौद्ध धर्म के महायान पन्थ में पूरी तरह से दिखलाई पड़ता है। कनिष्क के समय लोगों में इसी महायान पन्थ का प्रचार था।
कनिष्क के समय की बीय महासभा-बौद्ध धर्म के इतिहास में कनिष्क का राज्य काल विशेषतः इसलिये प्रसिद्ध है कि उसके संरक्षण में बौद्ध धर्म की चौथी महासभा हुई थी। इसके पहले तीन महासभाएँ भिन्न भिन्न समयों में हो चुकी थीं, जिनका हाल आगे ( परिशिष्ट (क) में ) दिया जायगा। इस महासभा का हाल तिब्बती, चीनी और मंगोल अन्थकारों के लेखों से विदित
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com