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गजनीतिक इतिवार में हारकर इसे चीन की अधीनता स्वीकृत करनी पड़ी। इसने एक एक करके पंजाब के कई यूनानी और शक राजाओं को जीत लिया; यहाँ तक कि बनारस तक का संपूर्ण उत्तरी भारत भी इसके अधीन हो गया। संभव है, इसका राज्य दक्षिण की ओर नर्बदा नदी तक रहा हो। मालूम होता है कि मालवा और पश्चिमी भारत के शक क्षत्रप इसे अपना अधीश्वर मानते थे । इसके सिक्के पूर्व की ओर बनारस तक और दक्षिण की ओर नर्बदा तक प्रायः कुल उत्तरी भारत में पाये गये हैं । यह पहला राजा था, जिसने सोने के सिक्के प्रचलित किये । इसके पहले के जितने सिक्के मिले हैं, वे सब प्रायः चाँदी या ताँबे के हैं। पर कैडफ़ाइसिज द्वितीय के समय से बाद के सोने के सिक्के बहुत अधिक संख्या में पाये गये हैं । इसका कारण यह है कि उस समय हिन्दुस्तान का बहुत सा रेशम, मसाला, जवाहिरात आदि सौदागरी का माल रोम जाता था; और उसके बदले में वहाँ से बहुत
सा सोना आता था। कैडफाइसिज द्वितीय के सिक्कों पर हाथ में त्रिशूल 'लिये हुए शिव की मूर्ति है, जिससे पता लगता है कि यह शिव का परम भक्त था । इसका पिता कैडझाइसिज़ प्रथम ८० वर्ष की अवस्था में मरा था।इससे कैडफ़ाइसिज़ द्वितीय अवश्य ही अधिक उम्र में गद्दी पर बैठा होगा। इसी लिये संभवतः उसने ३० वर्ष से अधिक राज्य भी न किया होगा । इसने काबुल की घाटी से आगे बढ़कर पंजाब अवश्य ६४ ई० के पहले ही जीत लिया होगा; क्योंकि पेशावर जिले में पंजतार नामक स्थान के पास जो शिलालेख* मिला है, वह इसी के समय का है। यह शिलालेख किसी
* Fleet-J. R. A. S., 1914. P. 372.
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