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भवीन शिल्प-कला अमरावतीवाले स्तूप के परिवेष्टन का निर्माण काल ईसवी दूसरी शताब्दी माना जाता है। पर स्तूप उससे बहुत पुराना है।
बुद्धगया में भी पत्थर का एक प्राचीन परिवेष्टन या घेरा है। यह मौर्य काल का सब से प्राचीन परिवेष्टन माना जाता है। पहले यह उस बोधि वृक्ष के चारो ओर था, जिसके नीचे बुद्ध भगवान् ने बुद्धत्व प्राप्त किया था । डाक्टर फर्ग्युसन ने इस परिवेष्टन का समय २५० ई० पू० माना है । इस पर भी बहुत उत्तम
कारीगरी समय २५० ईयावा । डाक्टर का
__ प्राचीन राजगृह (राजगिर) में जो पुरानी दीवारें और भनावशेष हैं, वे मौर्य काल के पूर्व के अर्थात् ई० पू० छठी शताब्दी के माने जाते हैं । कहा जाता है कि शैशुनाग वंश के राजा बिम्बिसार ने प्राचीन राजगृह उजाड़कर एक नवीन राजगृह बसाया था।
मौर्य काल की चित्रकारी का एक नमूना सरगुजा रियासत में रामगढ़ पहाड़ी की जोगीमारा नामक गुफा में है। यहाँ के चित्र प्रायः धुंधुले पड़ गये हैं। पर अब भी उनका अस्तित्व है । डाक्टर ब्लाक ने उनका समय ई० पू० तीसरी शताब्दी निश्चित किया है।
प्राचीन समय में जहाँ बड़े बड़े स्तूप होते थे, वहाँ भिक्षुओं के रहने के लिये विहार और पूजा के लिये चैत्य अथवा मन्दिर भी होते थे। विहार की बनावट वैसी ही होती थी, जैसी प्रायः हिन्दुओं के मकानों की होती है, अर्थात् बीच में एक आँगन रहता था और उसके चारो ओर भिक्षुओं के रहने के लिये कमरे बने रहते थे । बौद्ध विहारों में सब से पहला नालन्द का प्रसिद्ध विहार है, जिसे ह्वेन्त्सांग ने सातवीं शताब्दी में देखा था।
बौद्ध चैत्यों या मन्दिरों के बारे में विशेष बात यह है कि वे
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