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बौद्ध-कालोन भारत
२८४ तथा हिन्दू धर्मावलम्बी हो गये और यहाँ की भाषा, रीति-रिवाज तथा धर्म ग्रहण करके भारतीयों के सामने पराजित हुए । एक तरह से भारतवासियों ने ही उन्हें अपना बना लिया । भवन-निर्माण विद्या, शिल्प कला, नीति, नाट्य कला आदि में भी भारतवासियों ने यूनानियों से कुछ नहीं सीखा । पंजाब में २५० वर्षों तक यूनानी शासन रहा; पर यूनानी भाषा का एक भी शिलालेख पंजाब या पश्चिमोत्तर प्रांत में आज तक न मिला । यूनानी साहित्य का भी कोई प्रभाव भारतीय साहित्य में नहीं मिलता । यदि भारतीय शिल्प कला पर यूनानियों का कुछ प्रभाव पड़ा भी हो, तो भारतीयों ने उसे अपने रंग में इतना रँग लिया कि उसका पता अब कठिनता से लगता है।"
शक (सीथियन) शकों का आगमन-प्राचीन समय में शक ( सीथियन) लोग सर दरिया के किनारे उत्तर की ओर एक जगह से दूसरी जगह भोजन और जीविका की खोज में घूमा करते थे। मध्य एशिया की यूची नाम की एक खाना-बदोश जाति ने शकों को ई० पू० १६० के लगभग वहाँ से निकाल बाहर किया। वहाँ से हटकर शकों ने बैक्ट्रिया (बलख) देश अपने अधिकार में कर लिया। किन्तु यूची लोगों ने वहाँ भी उनका पिण्ड न छोड़ा। यूचियों से हारकर वे पूर्व और दक्षिण की ओर भाग निकले । उनके एक दल ने अफगानिस्तान के दक्षिण में आकर अपना राज्य स्थापित किया। उनके नाम पर उस प्रान्त का नाम शकस्थान
(सीस्तान) पड़ गया। दूसरे दल ने काबुल और खैबर से हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com