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राजनीतिक इतिहास कर तक्षशिला में अपना राज्य कायम किया। तीसरा दल पंजाब से होता हुआ यमुना तक आ पहुँचा और सौ वर्षों तक मथुरा में राज्य करता रहा। और चौथा दल हाला पर्वत से होता हुआ सिन्ध और सुराष्ट्र ( काठियावाड़) में पहुँचकर बहुत दिनों तक राज्य करता रहा।
उत्तरी क्षत्रप-तक्षशिला ( उत्तर-पश्चिमी पंजाष ) और मथुरा के शक राजाओं को इतिहासज्ञ लोग उत्तरी क्षत्रप कहते हैं । यद्यपि "क्षत्रप" शब्द संस्कृत का सा प्रतीत होता है, तथापि वास्तव में यह पुराने ईरानी "क्षथूपावन" शब्द का संस्कृत रूप है। इसका अर्थ "पृथ्वी का रक्षक" है। इस शब्द के "खतप" (खत्तप) "छत्रप" और "छत्रव" आदि प्राकृत रूप भी मिलते हैं । उत्तरी क्षत्रप लोग पार्थिव (पार्थियन ) राजाओं को अपना सम्राट् या अधीश्वर मानते थे और इसी लिये वे "क्षत्रप" (अर्थात् सम्राट् के सूबेदार ) कहलाते थे। उत्तरी क्षत्रपों का पार्थिव राजाओं से बहुत घनिष्ट सम्बन्ध था। भारतवर्ष के पार्थिव राजा
और उत्तरी क्षत्रप प्रायः एक ही हैं। उन्हें अलग करना असंभव है। उत्तरी क्षत्रपों में शक और पार्थिव दोनों जातियों के राजा पाये जाते हैं । अतएव पार्थिव राजवंश का वर्णन करते समय ही उनके बारे में भी लिखा जायगा।
पश्चिमी क्षत्रप-जो शक राजा पश्चिमी भारत में राज्य करते थे, वे पश्चिमी क्षत्रप कहलाते थे। मालूम होता है कि ईसवी प्रथम शताब्दी के उत्तरार्ध में ये लोग सिन्ध और गुजरात से होते हुए पश्चिमी भारत में आये थे। सम्भवतः उस समय ये उत्तर-पश्चिमी भारत के कुणष राजाओं के सूबेदार थे । पर
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