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राजनीतिक इतिहास कणि ने उसको हराकर उसके राज्य पर अधिकार जमा लिया था और उसके सिकों पर अपनी छाप लगवा दी थी।
चष्टन-नहपान के समय में क्षत्रपों की जो शक्ति नष्ट हो गई थी, वह चष्टन ने फिर से स्थापित की । यूनानी भूगोलज्ञ टालेमी ने अपनी पुस्तक में चष्टन का उल्लेख किया है। यह पुस्तक उसने सन् १३० ई० के लगभग लिखी थी। इसमें लिखा है कि उस समय पैठन में आन्धू वंशी राजा वासिष्ठीपुत्र श्रीपुलुमायि की राजधानी थे। इससे प्रकट होता है कि चष्टन और उक्त पुलुमायि समकालीन थे । चष्टन ने अपना नया राजवंश स्थापित किया था। इसकी राजधानी उज्जैन थी। इसके वंश में लगातार बहुत से क्षत्रप हुए, जो गुप्त राजाओं के समय तक किसी न किसी तरह राज्य करते रहे।
रुद्रदामन्—यह चष्टन का पौत्र था । चष्टन के वंश में यह महाप्रतापी राजा हुआ। इसके समय का एक शिलालेख * जूनागढ़ में मिला है जिसका समय शक संवत् ७२ (ई० स० १५०) है। यह शिलालेख गिरनार पर्वत की उसी चट्टान के पीछे खुदा हुआ है, जिस पर अशोक ने अपना लेख खुदवाया था। रुद्रदामन का शिलालेख शुद्ध संस्कृत में है। इसके पहले के जितने शिलालेख मिले हैं, वे सब प्राकृत या प्राकृत-मिश्रित संस्कृत में हैं । इस शिलालेख से पता चलता है कि रुद्रदामन ने अपने पराकम से ही महाक्षत्रप की उपाधि प्राप्त करके, आकर (पूर्वी मालवा), अवन्ति (पश्चिमी मालवा), अनूप, आनत (उत्तरी काठियावाड़), सुराष्ट्र
* एपिग्राफिया इंडिका; खं० ८; पृ. ३६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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