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पौद्ध-कालीन भारत
२७२ लिया। उसने राजपूताने में चित्तौर के पास मध्यमिका ( आजकल के "नागरी” नामक स्थान ) पर तथा अवध के दक्खिन में साकेत नामक स्थान पर भी हमला किया। वह पाटलिपुत्र राजधानी पर भी हमला करने को तैयार था। बड़े भयंकर युद्ध के बाद वह परास्त किया गया और लाचार होकर उसे जीते हुए प्रदेशों को छोड़कर पीछे हट जाना पड़ा। तभी से सन् १५०२ ई० तक भारतवर्ष पर किसी युरोपीय का हमला नहीं हुआ। १५०२ ई० में वास्को डि गामा ने कालीकट में प्रवेश किया था। __ खारवेल का हमला-ई० पू० १५५ के लगभग या उससे कुछ पहले कलिंग के राजा खारवेल ने भी मगध पर आक्रमण किया । “खारवेल के शिलालेख" * से पता लगता है कि उसने पुष्यमित्र को युद्ध में परास्त किया; और कदाचित् मगध राज्य की पूर्वी सीमा को अपने राज्य में मिला लिया। पर यह विजय कदाचित् स्थायी न थी।
पुष्यमित्र का अश्वमेघ यज्ञ-पुष्यमित्र के पुत्र अमिमित्र ने भी इसी समय के लगभग विदर्भ (बरार) के राजा पर विजय प्राप्त की । कालिदास के "मालविकाग्निमित्र" नाटक में इसी अग्निमित्र का वर्णन है । अस्तु; इन सब विजयों के कारण पुष्यमित्र अपने को उत्तरी भारत का चक्रवर्ती सम्राट् समझने लगा । अतएव इन विजयों के स्मरणार्थ उसने अश्वमेध यज्ञ किया। अश्वमेध यज्ञ के लिये जो घोड़ा छोड़ा गया था, उसकी रक्षा का भार पुष्यमित्र
• खारवेल का शिलालेख कटक से १६ मील दूर उदयगिरि पहाड़ी की हानीगुम्फा नामक गुफा में एक चट्टान पर खुदा हुभा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com