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राजनीतिक इतिहास के पोते वसुमित्र को दिया गया। बुन्देलखण्ड और राजपूताने के बीच जो सिंधु नदी है, उसके किनारे पर अश्व की रक्षा करते हुए वसुमित्र की मुठभेड़ यवनों की एक सेना से हुई। ये यवन लोग कदाचित् मिनेंडर की उस सेना में के बचे हुए थे, जिसने राजपूताने में मध्यमिका (नागरी) को घेरा था। इस प्रकार समस्त शत्रुओं को परास्त करने के उपरान्त पुष्यमित्र ने अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ किया। इस यज्ञ में कदाचित् महाभाष्यकार पतंजलि ऋषि भी उपस्थित थे । अपने महाभाष्य में उन्होंने इस यज्ञ का इस तरह पर उल्लेख किया है, मानों यह यज्ञ उनके समय में ही हुआ हो *। इस अश्वमेध यज्ञ से यह सूचित होता है कि अशोक के समय में जो ब्राह्मण-धर्म तथा ब्राह्मणों का प्रभाव हीन अवस्था को प्राप्त हो चुका था, उसने फिर पलटा खाया और सिर उठाना शुरू किया।
बौद्धों परं पुष्यमित्र के अत्याचार-बौद्ध ग्रंथों से सूचित होता है कि पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्म का पुनरुद्धार केवल शान्तिपूर्ण उपायों से करने में ही संतुष्ट न था। कहा जाता है कि उसने बौद्धों पर बड़े भयानक अत्याचार किये। उसने मगध से पंजाब में जालंधर तक अनेक संघाराम जलवा दिये और अनेक भिक्षुओं को मरवा डाला । जो भिक्षु उसकी तलवार से बच गये, वे दूसरे राज्यों में भाग गये। कदाचित् बौद्ध ग्रंथकारों का यह वर्णन अतिशयोक्ति-पूर्ण हो, पर इसमें कुछ सार अवश्य है।
• पतंजलि ने इस यज्ञ का उल्लेख इस प्रकार किया है-"इह पुष्यमित्रं याजयामः" (अर्थात् “यहाँ हम पुष्यमित्र का यज्ञ कराते हैं")। Indian
Antiquary; 1872, p. 300. . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com