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प्राचीन शिल्प-कला
__ भरहूत इलाहाबाद से कोई १२० मील है। वह नागौद राज्य में है। उसका पुराना नाम वरदावती है। सन् १८७३ ईसवी में जनरल कनिंघम नागौद राज्य से होकर निकले । वहाँ उन्हें प्राचीन भरहूत के खंडहरों का पता मिला। वे वहाँ गये । परीक्षा करने पर उन्हें विदित हुआ कि वहाँ एक बहुत पुराना और बड़ा भारी स्तूप था और कई एक विहार भी थे। दो तीन बार में उन्होंने स्तूप के आस पास की जमीन खुदवाई। खोदने से कितनी ही मूर्तियाँ, स्तंभ और टूटे फूटे तोरण आदि मिले। ब्राह्मी अक्षरों में खुदे हुए सैकड़ों शिलालेख भी प्राप्त हुए । साथ ही गौतम बुद्ध के चरित सबन्धी अनेक दृश्य भी खुदे हुए पाये गये । यहाँ के स्तूप का व्यास ६८ फुट और प्रदक्षिणा का मार्ग २१३ फुट था । उसमें चार प्रवेश-द्वार थे और सब मिलाकर अस्सी खंभे थे। बौद्ध जातकों में जो कथाएँ हैं, वे सब चित्र या मूर्ति रूप में इन खंभों और तोरणों पर खुदी हुई थीं । खोदने से कितने ही यक्षों, यक्षिणियों, देवताओं और नागराजों आदि की बड़ी ही सुन्दर अक्षत मूर्तियाँ मिलीं। कनिंघम साहब ने ये सब वस्तुएँ कलकत्ते भेज दी। वहाँ वे अजायबघर में रक्खी हैं। प्राचीन शिलालेखों और सिक्कों से जनरल कनिंघम ने यह सिद्ध किया कि भरहूत का स्तूप कम से कम ई० पू० २४० का है।
भूपाल राज्य में भिलसा गाँव के निकट कई स्तूप-समूह हैं। कनिंघम साहब ने पहले पहल इनका वृत्तान्त सन् १८५४ ई० में प्रकाशित किया था। इन स्तूपों में सब से प्रधान साँची का एक बड़ा स्तूप है। यह स्तूप ५४ फुट ऊँचा है और आधार के ठीक ऊपर इसका व्यास १०६ फुट है। इसके चारो ओर जो
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