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बौद्ध-कालीन भारत
२१२ महावीर स्वामी क्षत्रिय ही थे। ब्राह्मण बालकों की तरह क्षत्रिय बालक भी अपने जीवन का कुछ अंश वेद आदि पढ़ने में बिताते थे। “गामणिचण्ड जातक" में कहा है कि एक राजा अपने राजकुमार को सात वर्षों तक तीनों वेदों और सब लौकिक कर्तव्यों की शिक्षा देता था। राजकुमार लोग विद्याध्ययन के लिये प्रायः किसी ब्राह्मण के पास अथवा तक्षशिला श्रादि विद्यापीठों में जाते थे । उन दिनों तक्षशिला बड़ा प्रसिद्ध विश्व-विद्यालय था । बनारस तक के विद्यार्थी इतनी दूर पैदल चलकर वहाँ पहुँचते थे। अध्ययन के विषय तीनो वेद और अठारहो विद्याएँ लिखी गई हैं।
ब्राह्मण-उस समय ब्राह्मणों की एक जाति बन गई थी। ब्राह्मण जन्म से होता था, न कि कर्म से * । ब्राह्मण अपनी जीविका के लिये नीच से नीच काम करने पर भी "ब्राह्मण" ही बने रहते थे। वे लोग अपने को सब वर्गों से उच्च समझते थे; क्योंकि वही यज्ञ करा सकते थे और क्षत्रियों के पुरोहित वन सकते थे । ब्राह्मण ग्रंथों में ब्राह्मणों के जीवन का जो चित्र मिलता है, वह उनके आदर्श जीवन का है। पर जातकों में ब्राह्मणों का जो चित्र मिलता है, वह उनके साधारण और घरेलू जीवन का है। उनमें हम ब्राह्मणों को अध्यापक, विद्यार्थी, किसान, पुरोहित
और व्यापारी आदि के रूप में पाते हैं। ब्राह्मण दो भागों में बाँटे गये हैं-एक सच्चे आदर्शब्राह्मण और दूसरे सांसारिक ब्राह्मण । सच्चा और आदर्श ब्राह्मण केवल ब्राह्मण कुल में जन्म लेने, यज्ञ करने या वेद पढ़ने से नहीं होता था, बल्कि अच्छे कर्म करने
___ * *ब्राह्मणो नाम जातिया ब्राह्मणो।" विनयपिटक; निस्सग्गिय, १०.२-१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com