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प्राचीन शिल्प-कला
जब अजातशत्रु गद्दी पर आया, तब बुद्ध भगवान् जीवित थे। पर साथ ही यहाँ यह भी कह देना उचित जान पड़ता है कि जायसवाल जी की इस खोज के बारे में अन्य विद्वानों में बहुत मत-भेद है।
अस्तु; मूर्ति या शिल्प कला के जो नमून अब तक मिले हैं, वे निश्चित रूप से अशोक के पहले के नहीं कह जा सकते। इसका कारण यह मालूम होता है कि अशोक के पहले घर तथा मूर्तियाँ काठ की बनाई जाती थीं। पहले पहल अशोक के समय में ही पत्थर की मूर्तियाँ और भवन बनने लगे। अतएव भारतीय मूर्तिकारी या शिल्प कला का आरंभ अशोक के समय से होता है। अशोक के पिता बिन्दुसार और पितामह चन्द्रगुप्त ने महल और मन्दिर आदि अवश्य बनवाये होंगे; किन्तु अब उनका कोई चिह्न बाकी नहीं है । कारण यही मालूम होता है कि अशोक के पूर्व इमारतें और मूर्तियाँ काठ की बनाई जाती थीं, जो अब बिलकुल नष्ट हो गई हैं।
मौर्य काल की शिल्प कला पूर्ण रूप से स्वदेशी नहीं है । उस पर प्राचीन ईरान की सभ्यता का भी थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ा है। अशोक और प्राचीन ईरान के बादशाह दारा के शिलास्तंभों, शिलालेखों और इमारतों के खम्भों को ध्यानपूर्वक देखने से यही ज्ञात होता है। अशोक के शिलालेखों का ढंग भी वैसा ही है, जैसा ईसा के पाँच सौ वर्ष पहले "पर्सिपोलिस" और "नख्सएरुस्तम्" में बादशाह दारा के खुदवाये हुए शिलालेखों का है । प्राचीन ईरान के शिलास्तंभों के शिखर, जो अब तक वहाँ की प्राचीन राजधानी "पर्सिपोलिस" और "सूसा" में विद्यमान हैं, घण्टाकार होते थे और उन पर एक दूसरे की ओर पीठ.
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